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________________ विषयानुक्रम अध्ययनक्रमांक आनंद की बात कई वर्षों से अप्राप्य बने हुये शास्त्रग्रन्थों की प्रतीक्षामें बैठे हुए मुमुक्षु विद्वानों को इस ग्रन्थरत्न के प्रकाशन से जो हर्ष की उर्मियाँ प्रस्फुटित होगी उस का निर्वचन नहीं किया जा सकता । उत्तराध्ययय सूत्र भगवान महावीरस्वामी के मार्मिक उपदेशों का मूल्यवान् महानिधि है । आत्महित की साधना में पदार्पण करने वाले मुमुक्षुओं के लिये यह सूत्रग्रन्थ तेजस्वी प्रकाशज है। १५७ १६५ १८१ समुचे जनसंघ में इस सूत्र को कंठस्थ करने की पवित्र प्रणाली चली आ रही है । ग्रन्थ के भीतरी भावों की स्पष्टता करने वाला, महोपाध्याय श्री भावविजयगणिवर का विवरण ग्रन्थ जनसंघमें अतिप्रिय होता चला जा रहा है। पू. मुनिराज श्री पद्मसेनविजय महाराज ने इस प्रकाशन के पीछे जो अथक प्रयास किया है वह अमूल्य है । सुश्रावक मोहनभाई जे. शहा का सहयोग भी अविस्मरणीय है । एवं नडीयाद नगरी का श्वे. मू. जन संघ भी धन्यवादाह है, जिसने अपने ज्ञाननिधि से इस ग्रन्थ के प्रकाशनमें सद्व्यय किया है। अध्ययनाभिधा विनयश्रुत परीषह चतुरंगीय प्रमादाप्रमाद अकाममरणीय क्षुल्लकनिम्रन्थीय उरभ्रीय कापिलीय नमिप्रव्रज्या द्रुमपत्रक बहुश्रुतपूजा हरिकेशीय चित्रसम्भूतीय इषुकारीय सभिक्षुक ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान पापश्रमणीय संयतीय मृगापुत्रीय महानिर्ग्रन्थीय समुद्रपालीय रथनेमीय केशिगौतमीय प्रवचनमातृ यज्ञीय सामाचारी खलुकीय मोक्षमार्गगति सम्यक्त्वपराक्रम तपोमार्गगति चरणविधि प्रमादस्थान कर्मप्रकृति लेश्याध्ययन अनगारमार्गगति जीवाजीवविभक्ति -:-: २०६ २१० २१४ २१७ २५८ २६६ २७३ इस शास्त्र के सम्यक अध्ययन से स्व-पर कल्याण की साधना उजागर की जाय यही शुभ आकांक्षा रखी जाय । -प्रकाशक Mmmmmmmm ३१० वि. सं. २०३९, महासुद ११ ३३० ३४५ ३५२ ३७१ ३७५ ३८२ ३८४
SR No.032088
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay Gani
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages424
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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