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________________ १०] प्रास्ताविक ११ बन्धविधान प्रशस्ति-(पूर्वार्ध) स्वोपज्ञवृत्ति सहित क्राउन आठ पेजी ३२० १२ बन्धविधान प्रशस्ति-(उत्तरार्ध) ,, , , , , ,, ३२१ थी ५८०+१८२ १३ उत्तरपयडिरसबंधो-(उत्तरार्ध) , , , २२८+१४-३६२ आ सिवाय पण अन्य ग्रंथोनु निर्माण कार्य चालु छे. परम पूज्य स्व० आचार्यदेवश्री विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजश्रीए पोतानु समग्र जीवन स्वाध्यायरत पसार कयु छे. तेओश्री आगम आदिना सारा जाणकार होवा साथे वर्तमानकालमा कर्मशास्त्रना प्रकांड विद्वान हता तेओश्रीए पण कर्मसाहित्य विशालप्रमाणमां रचेल छे. अटल ज नहि पोतानो शिष्य प्रशिष्यादि परिवार सदा य स्वाध्यायरत रहे ते माटे पूरती चीवट राखी हती, तेना परिणामे तेओश्रीनी प्रेरणाथी लाखो श्लोक प्रमाण कर्मसाहित्य रचायुके. ___ आ साहित्य तैयार करवा माटे प्रगट-अप्रगट कर्मसाहित्यनो तलस्पर्शी अभ्यास करी, ते ते पदार्थोनो संग्रह करी विभागवार साहित्यसर्जन करेल छे. तेमज आ ग्रंथोमा खवगसेढि ग्रंथनु संशोधन पू० स्व० आचार्यदेवश्री विजयोदयसूरि महाराजाए पण अने अन्य ग्रंथोनु संशोधन पू० स्व० आ० श्री प्रेमसूरीश्वरजी म० तथा स्व० पू० जम्बूसूरीश्वरजी म. • सा० आदि कर्मशास्त्रना निपुण महात्माओए करेल छे. आ रीते पूज्यपाद स्व. आचार्य देवश्री विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजश्रीए पोताना परिवारमा स्वाध्यायगंगा वहावी हती, मनःशुद्धि माटे स्वाध्याय ए मोटु साधन छे आथी ज ज्ञानीओओ का छे के-सज्झायसमो त्थि तवो।। आ सिवाय पण आज संस्था तरफथी पूर्वधर वाचकवर श्री शिवशर्मसूरिकृत बन्धशतक टीप्पन तथा अवचूरि साथे, वृत्ति सहित चार प्राचीन कर्मग्रंथ टीप्पन सहित सप्ततिका नामे छट्टो कर्मग्रंथ अने सूक्ष्मार्थ विचार सार प्रकरण आदि कर्मसाहित्यने लगतां उत्तम प्रकाशनो वहार पडयां छे. पू० आ० श्री देवेन्द्रसूरि रचित सटीक चार कर्मग्रंथो तथा आ ग्रंथ श्री जैन आत्मानंद सभा तरफथी वि. सं. १९९० मा बहार पडेल, तेनु शुद्ध संपादन पू. प्रवर्तक श्री कांतिविजयजी म० श्री ना शिष्यरत्न पू० मुनिराजश्री चतुरविजयजी म. श्रीए धणी महेनतपूर्वक करेल, पण ते हाल अप्राप्य होइ अने अभ्यासमा घणुन जरुरीयात वालु होवाथी आ संस्था तरफथी पुनमुद्रण थइ रहेल छे, ते अभ्यासकवर्गने घणुज उपयोगी निवडशे. परम पूज्य आचार्यदेवश्री भुवनभानुसूरीश्वरजी म. सा. ना प्रशिष्यरत्न ५० पू० मुनिराजश्री जयघोषविजयजी महाराजश्री नी सूचनाथी पं. श्री रतिलाल चीमनलाल दोशी ए प्रस्तावना लखवा प्रेरणा करी मने आ स्वाध्यायमा सहभागी बनावेल के ते माटे तेओश्रीनो अंतःकरणपूर्वक आभार मानु छु.
SR No.032086
Book TitleNavya Panch Karmgrantha Tatha Saptatika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Purvacharya, Malaygirisuri
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages602
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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