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________________ १५ तिथोंकी स्तुति. कलित कलमत्त मुकल्लमीस महेजिनाः ॥ २॥गक कि → → गिक्षिक गज्ञिपट्टा ताड्यते । तललोंकि लों लोषि षिनि मेंषि मेंषिनि वाद्यते। जकिन थुगि थुगिनि धोंगि धोगिनि कलरवे । जिन मत मनंतं महिम तनुता नमति सुर नर मुबवे ॥३॥षुदांकि खुदां षुषुडदिदां षुषुडदि दोंदों अंबरे । चाचपट चचपट रणकि ऐणे मणण मेंमें कंबरे। तिहां सरग मपधुनि निधप मगरस सस ससस सुर सेवता । जिन नाट्यरंगें कुशलमुनिसं दिसतु शासन देवता॥४॥ इति श्रीजिन कुशलसूरिजीकृत पार्थजिन स्तुतिः॥१४॥ ॥अथ चैत्रीपूनम स्तुतिः॥ ॥ ॥ सेज गिरि नमियै कषन देव पुंमरीक। शुनतपनी महिमा सुणि गुरु मुख निरनीक । शुधमन नपवासै विधिसुं चैत्यवंदनीक। करियै जिन आगल टाली वचन अलीक ॥१॥ शक स्तवनादिक प्रथम तिलक दश वीस । अक्त गिण तीसे चढता तिम चालीस । पंचासनी पूजा जा षइ इम जगदीस । तेहीज नितप्रणमुं स्वामी जिन चनवीस ॥ २ ॥सुदि पदनी पूनम चैत्रमास शुनवार । विधिसेतीलहीये आगमसाख विचार । इम सोलवरस लग धरियै न्यान नदार । करतां नरनारी पामे नवनोपार ॥३॥ सोवन तनचरणे नयणे तिम परिविंद । चक्केसरी देविय सेविय नर मुर वृंद । कामितसुखदायक पूरयमन आणंद । जंपै गणनायक श्रीजिनलाल सूरिंद ॥४॥इति श्रीचैत्री पूनिमस्तुतिः॥१५॥॥॥ ॥॥ ॥अथ नवपदस्तुतिः॥ ॥ ॥ निरुपम सुखदायक जगनायक लायक शिवगति गामी जी। करुणासागर निजगुण आगर सुन्न समता रस धामी जी । श्री सिद्ध चक्र शिरोमणि जिनवर ध्यावे जे मन रंगै जी। ते मानव श्रीपाल तणी परि पामें सुख सुर संगे जी। ॥१॥ अरिहंत सिघ आचारज पाठक साधु महा गुणवंता जी। दरसण नाण चरण तप नत्तम नवपद जग जय वंता जी। एहनो ध्यानधरंता लहीये अविचल पद अविनासी जी। तेसगला जिननायक नमीयै जिनए नीति प्रकासी जी॥२॥ आसूमास मनोहर तिमवलि चैत्रकमास जगी जी। नजवाली सातमथी करिये नव आंबिल नव दिवसे जी। तेर
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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