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७९८ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. ॥ ८॥ जैन लान खरतर गणधारी । सदगुरु चरण कमल बलिहारी ॥ (जै०)॥९॥ इति श्री दादाजीकी आरती संपूर्णम् ॥ ॥
॥ ॥ श्रीदादाजीको वृद्ध स्तवन लि० ॥॥ ॥॥ विलशे रुच्चि समृधि मिली। शुन्नयोगै पुण्यदशा सफली । जि न कुशलसूरि गुरु अतुल वली । मनवंटित आपै दादो रङ्गरली ॥१॥ मङ्गल खील समें विपुला । नव नवय महोहव राजयला । सुपसायें गुरु चढतीक ला। सुकलीणी पुत्रवती महिला॥२॥सबही दिन थायै सबला । सद वास कपूर तणा कुरला । हय गय रथ पायक बहुला। किबोल करै मंदिर क मला॥३॥बौं चमर निसाण घुरै । नरवै दरवार खमा पुहरै । जय जय करजोमी उचरै। सांनिच गुरु सब काज सरै ॥ ४ ॥ सरसा जोजन पान सदा। पुखरोग उकाल न होय कदा। अविचल ऊलट अंग मुदा । गुरु कूरम दृष्टि प्रसन्न सदा॥५॥घम घम मादल नाद घुमे । बत्तीसे नाटक रङ्ग रमें । प्रगट्यो पुण्य प्रताप हमैं । सबला अरियण ते आय नमें ॥६॥ तन मुख मन सुख चीर तनें । पहिरे वेलानल होय रनें । ध्यावो कुसल गु रु एक मनैं ।। जुनक सुरमंदिर नरै धनें ॥७॥ ततखिण घण खच्यो आ वै। करि स्यामघटा मेह वरसावै । तिसियां तोय तुरत पावै । जलदाता त्रि जग सुजस गावै॥८॥लहिरयां जल कबोल करै । प्रवहण नवसायर मशिमरे । बूडंता वाहण जे समरै । ते आपद निश्चै सुं नवरै॥ ९ ॥खम खम खमग प्रहार वहै । सोदामनि जिम सम सेल सहे । कुशल २ गुरुनाम कहै । ते खेम कुशल रिणमझ लहै ॥ १० ॥ धुन सकल परचापूरै । श्री नागपूरै संकट चूरै । मंगलोर अधिकै नरे। देरावर जय टाल दूरै ॥ ११ ॥ वीरमपुर वानै सुधरै । खंनाइतपुर विक्रम नयर। जिणचंद सूरि पाटै पवरे। जसु कीरति महिममल पसरै ॥ ॥ १२ ॥ पूरब पश्चिम दक्षिण आगै । नुत्तर गुरु दीपै सौनागें । दह दिशि जन सेवा मांगे। श्रीखरतर गठनी म हिमा जागै ॥ १३ ॥ पुर पट्टण जनपद गमै । गाईजै कुशल नयर गामै । पूजे जे नर हितकामें । ते चक्रवर्ति पदवीपांमे ॥ १४ ॥ श्रीजिनकुशलसूरि