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________________ ७९२ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. ॥ ॥ अथ चोथी धूप पूजा ॥॥ ॥ ॥दोहा॥ धूप पूज कर सुगुरु की। पसरे परमल पूर । जस सुगंध जगमें वधे । चढे सवाया नूर॥ ॥॥ ॥ ॥ राग सोरठ ॥ कुबजा ने जादू मारा॥ए चाल॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ अंबिका विरुद बखाणे गुरु तेरो॥ अं०॥ तुम युग प्रधान नही गने॥गु० एप्रांकणी॥गढ गिरनार अंबड श्रावक। एसो नियम चित गणे। युग प्रधान इस जुग में कोई। देखू जन्म प्रमाणे ॥ गुअं०१॥ कर नपवाश तीन दिन बीते । प्रगटी अंबा ज्ञाने॥ गु०॥ प्रगट होय कर में लिख दीना। सुवरन अदर दाने ॥ गु० अं० २॥ या गुण संयुत अदकर वांचै । ताकू युग वर जाने ॥गु०॥ अंबड मुलक २ में फिरता । सूरि शकल पतवाने ॥ गु० ३॥आया पाश तुमारे सदगुरु । कर पसार दिखलाने ॥ गु० ॥ वास देप नन ऊपर माला । चेला वांच सुणानें ॥गु० अं० ४ ॥ सर्व देव हे दाश जिनोके । मरु धर कल्प प्रमाणे ॥युग प्रधान जिन दत्त सूरीश्वर ।अंबम शीश जुकाने ॥ गु० ५॥न्द्योतन सूरीने निज हथ । चोरासी गड ठाने । सो शव तुमरी शेवा सारे । चौरासी गढ मानें ॥ गु० ६ ॥ जो मिथ्यात्वी तुमकू न पूजे । सो नही तत्व पिगने । नद्र बाहु स्वामी तुम कीर्तन । कीनी ग्रंथ प्रमाणे ॥ गु० ७॥ युग प्रधान परि कीए गंडिका । गण धर पद वृत्ति म्याने। कहे रामशधिशार गुरुकूँ। पूजा धूप कराने ॥गु० ८॥श्लोक ॥अगर चंदन धूप दशांगजैः । प्रशरिता खिल दिनु सु धुम्रकै ॥ शकल मं० ४ ॥ नशी श्रींपर० धूपं निविपामिते स्वाहाः ॥ ४ ॥ ॥१॥ ॥अथ पांचमी दीपपूजा॥॥ ॥ * ॥दोहा॥दीप पूज कर सुगण नर । नित २ मंगल होत । नजि यालो जगमें जुगत । रहे अखंमत जोत ॥१॥ ॥ ॥ चाल ख्याल की ॥ पूजन कीज्योजी नर नारी गुरु महाराज का ॥ हो पू० ॥ सिंधु देशमें पंच नदी पर । साधे पांच पीर । लोई ऊपर पुरष तिराये । ऐसे गुरू सधीर ॥ पू०॥२॥ प्रगट होयके पांच पीरने । सात दीया वरदांन । सिंधु देश में खर तर श्रावग । होवेगा धनवान ॥ पू० ॥२॥ सिंधु
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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