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________________ ७८८ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. ॥ ॥ अथ नैवेद्य पूजा ॥१॥ ॥ ॥ बहु बिधै श्वरुनि वटकेयकैः। प्रवर मोदक पुंज सु खर्जकैः। सकल मङ्गल ०॥क्षी श्री० । नैवेद्यं ययामहे स्वाहाः॥ ॥१॥ ॥ ॥ अथ दीप पूजा ॥॥ ॥॥अति सुदीप्त मयै खलु दीपकै । विमल कंचन नाजन संस्थिते । सकल मंगल नझी श्री०। दीपं ययामहे स्वाहाः॥ ॥ 1 ॥3॥अथ धूप पूजा॥ ॥ ॥ ॥अगर चंदन धूप दशांगजै । प्रसरिता खिल दिनु सुधुम्रकैः । सकल मंगल०॥.क्षी श्री। धूपं ययामहे स्वाहाः॥ ॥१॥ ॥ॐ॥अथ फल पूजा ॥2॥ ॥ * ॥ पनशमोच सदा फलकर्कट । सुसुखदैः किल श्रीफल चिट। सकल मङ्गल०॥नजी श्री० । फलं यया महे स्वाहाः॥॥ ॥॥अथ अर्घ पूजा ॥2॥ ॥ ॥जल सुगंध प्रसून सुतंजुलै । वरु प्रदीपक धूप फलादिनिः। सकल० ॥ शी श्री । श्रीजिन कुशल सूरि० । अर्घ० स्वाहा ॥ इति ॥ ॥ ॥ अथ दादा गुरु महाराज की पूजा लिख्यते ॥ ॥ * ॥ अथ पहली थापना स्थापन करके आव्हान का श्लोक पढे ॥काव्य ॥ सकल गुण गरिष्टान् सत्तपोनिवरिष्टान् । शम दमय मनुष्टांश्चारु चारित्रनिष्टान् । निखल जगति पीठे दर्शितात्म प्रनावान्। मुनिप कुशल सूरिन् स्थापया म्पत्रपीठे ॥१॥ उजी श्री श्री जिन दत्त श्री जिन कुशल श्री जिन चंद्रसरि गुरौ अत्रावतरावतर स्वाहा ॥२॥ झी श्री श्री जिन दत्त सूरिगुरौ अत्रतिष्ट २ ठः ठः ठः स्वाहा ॥ इति प्रतिष्टापनं ॥नी ी श्रीजिनदत्तसूरिगुरौ अत्र मनसंनिहितो नव बषट् इति संनिधीकरणं ॥३॥ अथ जलका कलश लेके स्नात्रीया सुच होके खडा रहे॥ ॥ ॥ ॥ ॥प्रथम जलपूजा || ॥दोहा॥ ईश्वर जग चिंतामणी । कर परमेष्टी ध्यान । गणधर पद गुण वर्णना । पूजन करो सुजाण १॥ सौ धर्मा मुनिपति प्रगट । वीर जिनेश्वर
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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