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________________ पांच ग्यांन पूजा. ७६९ तिह भलो शकल विमल गुण आगर विजन सेविय । (आंकणी) एमति ज्ञान सदा नमियै। निजपाप सकल दूरै गमियै । मनशुधकरी निज गुण रमियै ॥ मति० ॥१॥ व्यंजनकर अवग्रह इमजांणो । चनुन्नेदकरी मनमें आंणो । इमन्नाखै श्रीजिन जगनाणो॥ मति०॥ २ ॥ अरथेकरी जेद जिणंद आखे । पणइंद्रिय मनकर प्रजुदाखै । मुनि मानस ते दिलमें रा खै ॥मति०॥३॥ बलि षटविध नेद ईहा कहिये । षटनेद अपाय करी लाहिये । षटविध धारण नवि सरदहियै ॥ मति० ॥ ४ ॥ इमद अ हाईस विधारो। इमन्नाखे जिनवर सुखकारो। निश्चय व्यवहारते अवधा रो॥मति० ॥ ४ ॥ बलिरतन जमित कंचन कलश । विपूजन कर तन मन उनसे । चिदरूप अनूप सदा विलसै ॥ मति॥६॥ एज्ञान दिवाक र समकहियै । इम सुमति कहै दिलमै गहियै । एशांनथी अनुपम सुख ल हियै ॥ मति० ॥७॥ नक्षी परमात्मने अनं० जन्म० श्रीम० ॥श्रीमति झान धारकेभ्यः। जलंयजामहे स्वाहाः ॥ १॥॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ (२) श्रुतकान पूजा लि० ॥ * .. ॥ ॥ (दूहा)॥ श्रुत धारक पूजा करो। नाव धरी मनरंग । नप गारी शिरसेहरो। भावो जिन नबरंग ॥१॥ मृगमद चंदन वाससूं । जो पूजै श्रुतअंग । अनुभव सुध प्रगटे सही । पामें सुरक अनंग ॥ २ ॥ (ढाल)॥ नामजीके नंदाजीसें लग्यामेरा नेहरा । (ना० ए चालमें)॥ . श्रुतजाकी पूजा कर सीखो नवी सेहरा । श्रु० । विनय सहित गुरुवंदन करके लुलर पायनमें गुरुदेवरा ॥ श्रुत०॥ १॥ तीन तीश आशातन टाली । गतिकरै नवि गुण गण गेहरा ॥श्रुत० ॥ श्रीगुरु ज्ञान अखंमित वरसै । ज्यु पावस रुत वरसै मेहरा ॥ श्रुत०॥ २॥ दशविध विनयकरै श्रुतगुरुको सेवेज्यु अलिफूलनें नेहरा ॥ श्रुत० ॥ गुण मणि रयण नरयो श्रुतसागर ।। देख दरश हरखावै मेरा जीवरा ॥श्रृंत०॥ पूजन बायन बलिर करियै ।। सीजे वंचित ज्युं मुनिसेवरा ॥ श्रुत०॥गुरुनगती जैसी गणधरकी। बी र कहै सुण गोतम सेहरा ॥ श्रुत० ॥ ऐसें गुरुभक्तीसें सीखो। ए श्रुतज्ञान सकल सुखदेहरा॥ श्रुत० ॥ गुरुविन ओरेन को नपगारी। गुरु देव सदा
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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