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________________ ७४६ . रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. ॥ * ॥अथ अाठमी नैवेद्यपूजा॥॥ ॥ ॥ दूहा ॥ मादेक मोतीचूरना । सींहकेसरिया सार। इत्यादिक नैवेद्यले । पूजकरो सुखकार ॥१॥ ॥ सिद्धचक्रपदवंदोरे । जविका ॥ ॥ एचाल ॥ श्री सिद्धाचल पूजोरे । नविका । इणसम गिरिनहीं दूजोरे जविका ॥ श्री०॥ मोदक मोतीचूरना लेई । नैवेद्यपूजा करियरे॥०॥ सिंहकेसरिया दालिया केई । मोदक इण विध धरियेरे ॥०॥श्री॥१॥ ललितसरोवर पेखो लावै । वलि सत्तानीवावरे ॥ ॥ तिहां विसरामो जविजन .लेवै । वमनैं चोतरे आवरे ॥ ॥ श्री० ॥ २ ॥ से जानीपाजै चढतां । आणंद अंग नमावेरे ॥४०॥ दूरथकी सेQजो दीसे। सुंदर रूप सुहावरे ॥न० श्री॥३॥ हिंगुलाजहमै चढके पूजो। कलि कुं पासकुमाररे ॥०॥ बारी मांहपेसी नविजन । नेटो आदि दीदाररे॥ जश्री० ४॥ मरदेवीटुंक मनोहर दीसै । गजपर बैठा सोहै रे॥ ॥. शांतिनाथ सोलम नपगारी । लविजनना मन मोहेरे॥न श्री०५॥वंस पोरवामे जगत वदीतो। सोमजी साह मल्हाररे॥०॥ रूपजी साह करायो जावै । चौमुख मूल नद्धाररे॥न० श्री०॥६॥ नेमनाथ चवरीदेखीने । देखो धरमवाररे । न०॥आदीसरना चरण पखाली। पूजो विविध प्रकाररे ॥ ज० श्री०॥७॥नमतीमांहे बिंब विराजै । कहतांनावै पाररे ॥४०॥ पुंग रीकगणधर गुरु पूजो । शांतिनाथ सुखकाररे ॥ श्री०- ८ ॥ चेलणात लाई सिघसिलाने । सिद्धबमजूनो कहियेरे ॥४०॥ पुंमरगिरनी नमतीमांहे एहसहुसरदहियेरे॥०॥श्री०॥९॥नलकामोलनें नाडवडूंगर । हस्तगि रीफिरनमियैरे॥०॥ कदमगिरीपरचरणजिनेश्वर । ट्यांसहुमुखलहियेरे ॥ ॥१०॥ घरवैगं जो जावकरीनें । मनशुद्ध भावनानावरे॥ ज० ॥ सुमतिकहै ते धनधन कहिये । जात्रानो फल पावैरे ॥ न० श्री० ॥ ११ ॥ काव्य पूर्ववत् ॥ शी श्री परमात्मने ॥ इति नैवेद्यपूजा॥१॥ ॥ॐ॥अथ नवमी फलपूजा ॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ निर्मल फलपूजा करो। नत्तमफल सुखकाज । नविजन पूजो जावसुं । सरै सहसुजकाज ॥१॥ ढाल ॥रामतरमवामै गइथी । मोरी
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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