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- श्रीपंचपरमेष्टी पूजा. करे तुम्ह नितवरणं ॥ श्री० ॥ नवनिध अडसिध मंगलमाला। पूजत जगमें जस बरणं ॥ श्री० ॥९॥ ॥ॐ शी परमात्म० शकलपाठक राजाय ऽष्ट द्रव्यंय० ॥ इति पाठक पदपूजा॥४॥3॥
॥ * ॥ अथ पंचमी साधु पदपूजा॥8॥ ॥ दूहा ॥ पंचमपदमें सोनता। साधु सकल गुणवंत । गुण सतवीस विरा जता। महिमावंत महंत ॥१॥ स्यामबरण मुनिवर कह्या । तप करवा अति सूरि । नविक कमल प्रतिबोधता। धरता निरमल नूर ॥२॥ ॥१॥
॥॥ ढाल ॥ सदा सहाई कुसल सू०॥एचालसिदा सहाई वीर पटोधर। मुणियो नविक नदार ॥ जलाजी ॥ मु०॥ सुधर्म स्वामी अंतरजामी। तमु नंदन सुखकार ॥०॥ जंबूआदिक गुणके सागर । तेप्रणमुं हितकार ॥ ज०. स० ॥१॥ प्रनवादिकसय पांच नदारा। प्रतिबोध्या सुखकार । ०। सिङनव
आदिक जे सूरि । तेहना शिष्य सुविचार ॥ज । स० २॥ थूलनद्र मोटो ब्रह्मचारी। उकरकरकार । न । सिंहगुफावासी जेमुनिवर । नाषे उक्कर कार ॥ ज० स०.३॥ वज्र कुमार बमे नपगारी । प्रतिबोध्या नर नार। । श्रीसिघसेन दिवाकर स्वामी। राखी जगमें कार ॥ ज० स०४॥ विक्रम आ दिक नृप अठार । प्रतिबोध्या सुखकार । न । एकतीरथकुं परगट करके। गुरुचरणां व्रतधार । न०स०॥५॥ देवढिगणी ए सबमें मोटा । राख्यो झा नज सार॥०॥सूत्र ताडपत्रे लिखराख्या। जेशलमेर मझार नस०॥६अन्न यदेव सूरी नपगारी। नव अंग टीका कार । न०। हेमाचारज है बमनागी जिणकीनो हेमनोनार। न०।७॥ कुमार-पालने जिण प्रति बोध्यो। सा खीधरमनो राख । न० श्रीजिनदत्त सूरीसर मोटा। श्रावक किया सवा लाख । ज० स०८ ॥ रतन प्रनु सूरी नपगारी । ओस्यानगर मकार । ज०। सवंसकी थापनाकरके । मोटो कियो नपगार । ज० स०॥९॥ इत्यादिक गुण गणके दरिया । सेवो नविक नदार ॥ ज० ॥ ढंढणादिक महातपसूरा। नामलियां जयकार । न० स०॥१०॥ गजसुकुमाल महामु निवंई। जावकरी इकतार । । धन धन्ना अरु शालनद्रजी। कीनीकर पीसार । ज० स० ॥ ११॥ खंधकसूरिना शिष्य पांचसै । सूरवीर व्रतधार