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________________ ७३४ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.. ब० ॥२॥ अवरदेव सब काच कथीरा । तुमहो अमोलक हीराजी ॥ ब० ॥ राग प्रेष तुम पास नहीं हैं । वाईस परीसह धीराजी॥ब०॥३॥ तेरी सूरत की वलिहारी । क्याकहुं अजब अमीराजी॥ब० ॥कोड देवता हाजर रहता अगहुँतै वडवीराजी॥ब० ॥ ४ ॥ जगजीवन जगलोचन कहिये । तुमसम अवरन धीराजी॥ब० ॥ तेरे गुणको पारन पायो । सुरनर राय वजीराजी॥ ब० ॥ ५ ॥बारै गुणो प्रनू ऊपर सोहै । वृत अशोक नदाराजी ॥ ब० ॥ तीनउत्र नामंगल पूछे। ध्वजा फरक रही साराजी ॥ब०॥६॥ पृथ्वीपीठ सिंहासन ऊपर । राजत हो बडवीराजी ॥ब० ॥ पान फूल करके बहु सो जत । राजतहो गुणपूराजी ॥ब० ॥७॥ सहस जोजननो इंद्रध्वज प्रनु । आगे चालत सारा जी॥ब० ॥ महागोप महामाहण कहिये। निर्यामक सत्थ वाराजी॥ब०॥८॥ ऐसे अरिहंत पदकी महिमा। सुणियो तुम सब प्यारा जी॥ब०॥ तीन लोकमें इनका फंडा। पूजतहै इकताराजी॥ब० ॥९॥ अष्ट द्रव्यसें पूजा करतां । सदा हुवै जयकाराजी ॥ ब॥ धर्म विशाल दयाल पसाय । सुमति कहै गुणसाराजी ॥ ब० ॥१०॥ भी परमात्मने पंचपरमे ष्टी महामंत्र राजाय अरिहंत पदे अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥ इति अरिहंत पद पूजा ॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥अथ दूजी सिहपूजा ॥ ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ दूजी पूजा सिद्धकी। करो नविक गुणवंत । धजा चढावो जावसुं। लालवरण मतिवंत ॥१॥ गुण इकतीस विराजता । तीनलोक सिरत्र । अनंतचतुष्टय धारता। जगजीवन जगमित्र ॥ २॥ ॥१॥ ॥ ढाल ॥ नविपनरमपदगुणगानाहो॥०॥ एचाल ॥लविसिद्ध पदके गुणगानाहो ॥न सिं०॥ पनरेनेदे सिद्ध विराजै । जवितुम चितमें लानाहो ॥ज सि०॥ जिना जिन तीरथा तीरथ कहिये । अन्य सलिंग कहानाहो ॥ ॥न सि॥१॥ स्त्री पुरुषादिक लिंगें जायै । कृत्य नपुंसक गानाहो ॥ ॥०॥ प्रत्येकबुद्ध नें महसंबुद्धा । बुद्धबोधित सुप्रमानाहो॥ज सि०२॥ एक अनेक और एकसमयें। गुरुमुखथी सुच पानाहो॥न सि०॥ अष्ट सिधि नव निधिके दाता। तुमहो देव निधानाहो ॥न सि०॥३॥ सादी अनंत
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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