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________________ ७२८ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. ॥ * ॥ छंद ॥ सुत्तत्थवित्थारण तप्पराणं । णमो णमो वायग कुंजराणं ॥ गणस्स संधारण सायराणं । सब पणा वयि मनुराणं ॥ १ ॥ नही सूरि पण सूरिगणनें सहाया, नमुं वाचका त्यक्त मदमोह माया ॥ वली द्वादशांगादि सूत्रार्थ दानें जिके सावधानें निरुघानिमानें ॥ घरे पंचनें व वर्गित गुणौघाः । प्रवादि द्विपोछेदने तुल्य सिंवाः ॥ गुणी गढ़संधारणे स्तंननूता । नूता । नपाध्याय ते वंदियें चितप्रभूता ॥ १ ॥ * ॥ ॥ ॥ ( ढाल ) ॥ द्वादशांगी वाणी वदे | सूत्र अरथ विस्तारेरे ॥ पंचवरग गुण जेहना । सुमति गुपति नित धारेरे ॥ १४ ॥ श्रीनबजाया दियें (कणी ) | दायक आगम वाचना, नेद जाव युत सारीरे ॥ सूरखकूं पंकित करे, जगतजंतु हितकारीरे ॥ १५ ॥ श्री० ॥ शीतल चंद कि रण समी, वाणी जेहनी कहियेंरे ॥ ते नवजाया पूजतां, अविचल सुखमा लहीयेंरे ॥ १६ ॥ इति ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ ॥ ॐ ॥ श्लोक ॥ द्वादशांगश्रुताधारान् ॥ शास्त्राध्ययनं तत्परान् । निवे शयाम्युपाध्यायान् । पवित्रे पश्चिमे दले ॥ १ ॥ श्रीधर्मशास्त्राण्यनिशं प्रशां त्यै । पठति येऽन्यानपि पाठयंति || अध्यापकांस्तानपराब्जपत्रे । स्थिता पवित्रान्परिपूजयामि ॥ २ ॥ ॐ श्री उपाध्यायेभ्योनमः ॥ # ॥ ॥ * ॥ अथ पंचम साधुपदपूजा ॥ ॥ ॥ * ॥ दोहा ॥ मोक्षमारग साधन जणी, सावधान थया जेह ॥ ते मु निवरपद वदतां । निर्मल थाये देह ॥ १ ॥ * ॥ ॥ खंतेय दंतेय सुगुत्ति गुत्ते । मुत्ते पसंते गुण जोग जुत्ते । गयप्पमाए हय मोह माए । शाह निचं मुणि राय पाए ॥ ५ ॥ ॥ ॥४॥ ॥ ॐ ॥ छंद ॥ साहूण संसाहिय संजमाणं । णमो णमो सुध दयादमाणं ॥ तित्ति गुत्ताण समाहियाणं । मुणीण माणंद पयप्रियाणं ॥ १ ॥ करे सेवना सूरि वायुग गणीनी । करूं वर्णना तेहनीशी मुणीनी । समेता सदा पंच समिति त्रिगुप्ता । त्रिगुप्तें नही काम जोगेषु लिप्ता || वली बाह्य अभ्यं तरें ग्रंथि टाली । हुये मुक्तिनें योग्य चारित्र पाली || शुभटांग योगें रमे चित्त वाली | नमूं साधुनें तेह निज पाप टाली ॥ १ ॥ ॥
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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