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________________ ६७० रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. विमलजिनंदकी अद्भुत तनुवि । सोजत सोवनवर । म० ॥ १ ॥ दीन दयाल दयानिध दाता । सवजीवन सुखकर | म० ॥ परमातम प्रजुपरम परमगुरु । प्रजुन तारण तरणें ॥ म० २ ॥ पुन्यप्रसाद लह्यौ प्रभु दरशना सास्वत शिवसुख धरणें । म० । बालकहै प्रभु सेवकजाणी । रख लीजै मोहि सरणे । म० ३ ॥ इति । शी श्री परमात्मने अनंता जन्मज० श्रीमत् श्री विमल जिनेंद्राय अष्टद्रव्यं यजामहेस्वाहाः ॥ ११ ॥ ॥ ॥ अथ बारमी पूजा ॥ ॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ श्री अनंत जिन देवकी । सेवकरो मनलाय । मनवंबित सुख जिमलहै । पुरगत दूर पुजाय ॥ १ ॥ रागमालवीगौमी ॥ सब अरति मथन मुदार धूपं ॥ करतगंध रसालरे ॥ देवा० ॥ एचाल ॥ ध्यावो सेवो जविजन नक्तै। अनंतजिनंद महाराजरे देवा || एसुरतरुसम जगमें जिन वरतारणतरण जहाज || देवा || ध्या०१ ॥ कृपासिंधु भगवान परमगुरु ती ननुवन सिरताजरे । देवा ॥ जिनसेवातें शिवसुख पायें । सफलहुवै सब काजरे । देवा । ध्यावो० ॥ २ ॥ इह संसार असार जनविन | कैसें रहे निज लाजरे । देवा । बालचंद्र प्रजु परपगारी । दायक अविचल राजरे । देवाध्या ०३|ी परमात्मने अनंत जिनेंद्राय प्रष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ः १२ ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ तेरमी पूजा ॥ ॥ ॥ ॥ (द्रा ) ॥ धर्म जिनेसर परमगुरु । परनपगारी देव | परमातम प्रभु चरणकी। कीजै नितप्रति सेव ॥ १ ॥ राग भैरवी ॥ पंचवरणी अंगीरची कुसु मजाती । कुसुमजाती रे अईयो कुसुम पां० एचाल ॥ सुखकारी रे देवा सुखकारी । धर्मजिनंद सेवो सुखकारी । सुखकारी रे देवाधि० | तीन जुवनके साम शिरोमणि । सब जीवन को है हितकारी ॥ धर्म० १|| जगजीवन जगबंधव जगगुरु । परम पुरुष प्रजु नपगारी । अकल सकल अघहर पर अनुपम प्रचल गोचर अविकारी | धर्म० २ । जवसंताप निवारण तारण । जिनसेवा मोहि अतिप्यारी । सुरतरुसम प्रभु चरणशरणकी । बालचंद कहै बलिहारी | धर्म ०३ इति । शी श्रीपरमात्मने अनंता जन्म० श्रीमत् श्रीधर्मजिनेंद्राय श्रष्ट द्रव्यं यजामहे स्वाहाः ॥ १३ ॥ ॥ ॥ 118 11
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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