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________________ ४९६ रत्नसागर. ये नासैगा ॥ १० ॥ गोवध करन लगे जब निजरें । देख शके क्यों प्रति पाला । करन युद्धजब जये महाबल । शस्त्र को ऊरु विकराला ॥ ११ ॥ ॥ ॥ ( दूहा) महायुद्ध करनें लगे। घाव चोराशी अंग ॥ ॥ ॥ करी मलोखा गामली। आये धुलेव सुरंग ॥ १ ॥ ॥ ॐ ॥ लावणी ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ गाम धुलेवे वंश जालमें । गुप्त रहे हैं प्रभु धरती । गाय एक कोडी बनीयनकी । आई वांहां चरती ॥ १ ॥ स्रवे तिहां पयधारा शिरपर । सांऊ समें फिर नहीं दूजे । रीस करी तव गोपालन पर । गौ पाल थरथर धूजे । दूजे दिन गौ लारें आयो । जह्यो नेद को बनीयनपें । शेठ प्राय जब नजरें देख्यो । चकित नयो हैं तन मन पें ॥ ३ ॥ मध्य रातमें सुपनो दीनो । रुषन नाथकी मूरत है । बाहिर निकासी करो लाप शी। जीतर मूरत पूरत है ॥ ४ ॥ नव दिनमें सब घाव मिलासी । मत कांठे तुं नव दिनमें । कियो शेठनें हुकुम प्रमाणें । आये संघ बहु ब दिन में ॥ ५ ॥ के उपवास के व्रतधारी । के अनुप्राणे पानंचले । कई लोक कुं दुःकर बाधा । कब प्रजुको दरसन मिले ॥ ६ ॥ युं सब लोकां दरस त रसकी। कहे लोक मूरत काढो । लाओ लाओ महाराजकी मूरत । संघ सवे लीनो आमो ॥ ७ ॥ जबर दस्तसें दिवस सातमें। लापशी बाहिर तवकीने। ससनर व्रण रहा ए। संघ लोक दर्शन दीने ॥ ८ ॥ फिर सुपनेमें द्रव्य दिखायो । संधे मिल देवल कीनो । मध्य विराजे रुपन तख तपर। कलियुग में यौं जश जीनो ॥ ९ ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ ॥ ॐ ॥ ( दूहा) संवत दार त्रेसठ । जान सदा शिवराय ॥ ॥ ॐ ॥ कियो धंगानो दुष्टनें । जाखं बरन बनाय ॥ १ ॥ ॥ ॥ मोतिदाम बंद ॥ ॐ ॥ ॥ ॐ ॥ सदाशिवराय चिंते मन एह । लुंटे बहुधाम जमीर जेह | ai पति नाथ धुव कहाय । लखो लग द्रव्य मंकार सुनाय ॥ १ ॥ जावां अब खूंटा गाम धुलेव । ग्रहुं सब माल जई तत खेव । आयो निज फोज लेइ दलगाज | तोपां दोयसाथ लीया बहु साज ॥ २ ॥ कंपु दोय जार जी
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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