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________________ ૪૮૮ रत्नसागर. (ख० ) ॥ ७ ॥ देवधरम साहिबको समरण । ऐ वातां थलकी। राग द्वेष ऊपजै नही जिनकुं । बीनती खैमलकी ॥ ( ख ० ) ॥ ८ ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ पुनः ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ अरज हमारी सुखो दीनपति । कौन जांति तिरणां । हम डु खी फिरत संसार चतुर गति । सो तुमसें निरना ॥ ( ० ) ॥ १ ॥ घोरा घोर नरक कै जीतर । नाना दुख जरना। मारन तारून बेदन जेदन | और देह धरनां ॥ ( अ० ) ॥ २ ॥ कबहुक तिरयंच योनि पायकै । गलै पास परना। कुधा तृषा अरु शीत उष्णता | मार मारकरना ॥ ( ० ) ॥ ३ ॥ देव विजूति पायकै सुंदर देख देख करना । जब माला मुर जावण लागी । सोच किये मरना ॥ ( ० ) ॥ ४ ॥ मनुषा जनम पायकै नटक्यो। कहुं नांही थिरनां । साहिब तुम सरणागत राखो । जनम मरण हरनां ॥ ( अ० ) ॥ ५ ॥ इति लावणी सं० ॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥ मुक्ति जाणेंकी गिगरी ॥ ॥ # ॥ ॐ ॥ ( हा ) तीर्थंकर महावीरनें । कौशल गणधर साज । कानून प्ररूप्या है दया । सब जीवन हित काज ॥ १ ॥ दान शील तप जावना | अशल खुलासा सार । जिलपुरषां धारण किया । पोहचा मुगति मजार ॥ २ ॥ चवदै सहस साधु हुवा | आर्या बत्तीस हजार । लाखां श्रावक श्रा वका । पाया जव जल पार ॥ ३ ॥ ( चाल हीर रंका ख्यालकी ) ॥ ॥ मेरी अदालत प्रभुजी कीजिये। जिन सासन नायक मुगती जाणेंकी मिगरी दीजिये ( जि० टेर) खुद चेतन सुदई बना है। आतुं करम मुद्राला । दावा र स्ता मुगति मारगका । धोखा देजाय टालाजी (जिं०) ॥ १ ॥ तप कागद इष्टांम । लिया । तलवाणां खिमा बिचारी । सिझाय ध्यान मजमुंन बनाकर। अर जीन गुजारी जी (जि० ) ॥ २ ॥ में जाता था मुगति मारगमें । क रमूनें घेरा। धोखा देकर राह जुलाया। छंट लिया सब मेराजी (जि०) ॥ ३ ॥ वोहत खराब किया करमुंनें । चौरासीकै मांही। दुक्ख अनंता पा या मैंनें। अंत पार कबु नांही जी ( जि० ) ॥ ४ ॥ सच्चे मिले वकील कानूनी | पंच महाव्रत धारी । सूत्र देख मसोदा कीना । तबमें अरजी मा
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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