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________________ जिनदासकृत लावणी संग्रह ४८१ कर करनी ए तरनेंकी ॥ नेम० ॥ ६ ॥ पियुजी पासें संयम लीनो । जि नसें कारज शरकी ॥ तपश्या करीनें उत्तम कीनी । ए जव पार कतरनें की नेम० ॥ ७ ॥ पीयुजी पहेलां राजुल नारी । पोहती सेज परमपदकी ॥ केवल पामी नेम सिधाए । येही शोनाहे जिनकी ॥ नेम० ॥ ८ ॥ चतुर कुशल ये कही लावनी । जिनसें काया ऊधरनेकी । अरिहंत ध्यान धरे दिलमां है । फिर फेरा नहिं फिरनेंकी || नेम० ॥ ९ ॥ ॥ *॥ ॥ * ॥ जिनदाशजी कृत १० घन लावण्यां ॥ ॥ * ॥ रे तुम जपो मंत्र नवकार । सफल करले अपनो ध्यान तुम मनमें धरो नर नार । खाण दुःखकी ए हे संसार न्याल अभी जिनदाश । रखो प्रजु मुऊ चरणोंके पाश ॥ १ ॥ ॥ ॐ ॥ ॥ ॐ ॥ सरक जा कुमति नार काली । तेरी संगतसें गई जाली ॥ सोवत समताकी में टाली । श्रातमा तपमें नहिं घाली ॥ अनंत जब बीत गया खाली | वेदना निगोदकी जाली ॥ अमरपद जिनदाश मांगे । सदा पद प्रभुजीके लागे ॥ २ ॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥ अवतार | करो प्रभु । 1 ॥ * ॥ शीश नित ननुं नाभिनंदन | चरण पर चढे केशर चंदन । करत सब इंद्रादिक बंदन । कटत हे कर्मोंका फंदन । साध्यो तें शिवपुर को साधन । सर्व जीवनकुं सुख कंदन | जिनंद गुण जिनदाश गावे । सीस चरणोंसें नांवे ॥ ३ ॥ 1111 11 11 ॥ * ॥ बोलत हैया मेरा हसकर । चढावुं चंदन चूवा घसकर । पैठा में धर्मो में धसकर । पाप दल दूर गया खसकर । चेतन हुवा खका कमर कसकर । हटाया कर्मोका लसकर । श्री जिनराज जहाज खासा । शर जिनदाश लीया बासा ॥ ४ ॥ 11, 11 ॥ * ॥ ॥ * ॥ समऊ मन मेरा मतवाला । तुझें नहिं कोइ हटकणवाला । वस्या तेरे हइये कुगुरु काला । दिया तें सुरगतिकुं ताला । फेरतो ममता की माला । वालतो भगवंत पर जाला । दयासें दे दिया ताजा । देखो जिनदासका चाला ॥ ५ ॥ ॥ *॥ ॥ ॥ ६१
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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