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राग रागण्यांका स्तवन.
४७३ शोक नवि आणें ॥ ते जगमें जोगीसर पूरा । नित चढते गुणगणे ॥ अवधू० ॥३॥ चंद्रसमान सौम्यता जाकी । सायर जेम गंजीरा ॥ अप्रमत्त नारंग परें नित्या । सुर गिरि सम शुचि धीरा ॥ अवधू०॥४॥ पंकज नाम धराय पंकशुं । रहत कमल जिम न्यारा ॥ चिदानंद ऐसा जिन उत्तम । सो साहेबका प्यारा ॥ अवधू०॥५॥8॥
॥ ॥ ॥ ॥राग प्रनाती॥१॥
. ॥ ॥ चालणां जरूर जाकुं ताकुं कैसा सोवणां (ए आंकणी ) जया जब प्रातकाल । माता धवरावे बाल । जगजन करत सकल मुख धोव णां ॥ चा० ॥ १ ॥ सुरनिके बंध बूटे घूवम नये अपूठे ॥ ग्वाल वाल मिलके । विलोवत विलोवणां ॥ चा०॥२॥ तज परमाद जाग तूंनी तेरे काज लाग॥ चिदानंद साथ पाय । वृथा नही खोवणा ॥ चा० ॥३॥
॥ॐ॥राग केरवो॥ ॥ ॥ॐ॥ समऊ परी। मोहे समऊ परी । जग माया अब झूठी मोहे ॥ समज ॥ ए आंकणी ॥ काल काल तुं क्या करे मूरख । नहीं नरोसा प ल एक घरी॥ जग० ॥१॥ गाफिल गिननर नांही रहो तुम । शिरपर घुमे तेरे काल अरी ॥ जग० ॥चिदानंद ए बात हमारी प्यारे । जाणो तुम चित मांहे खरी॥जग० ॥३॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥राग गजल ॥ * ॥ ॥ ॥ राजुल पुकारे नेम पिया। ऐसी क्या करी ॥ मुझे डोमके चले हो चूक हमसे क्यापरी ॥राजु० ॥१॥ हुइ आशकी निराश । नदाशीनताघमी॥ प्यारा बस नहीं हमेरा । प्रीतम पीरमें पमी ॥ राजु० ॥२॥ हमसें रह्यो न जाये। प्रीतम तुम बिना घमी ॥ संयम लीजीयें दयाल । दया धर्म आदरी॥ राजु०॥३॥निशदिन तुमेरा नाम । देते ज्ञानकी करी ॥ मुनि चंदविज य चरण कमल । चित्तमें धरी ॥राजु०॥४॥ॐ॥ ॥ ॥
॥॥राग धन्याश्री॥ * ॥ ॥ ॥ कौन किसीको मित्त । जगतमें कौन किसीको मित्त ॥ ए आं कणी ॥मात तात नरजात सजनसें । कांइ रहेत निचिंत ॥ज ॥१॥