SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 482
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७० रत्नसागर वीश तस्कर । नगरकूं करत हैरान है | ऐसे० ॥ २ ॥ प्रजा पुकार सु न तब जाग्यो । चेतन राय सुजाण हे ॥ ऐसे० ॥ ३ ॥ ज्ञानको वाण वचन रस भेदे । हाथमें लाल कमान हे ॥ ऐसे० ॥ ४ ॥ रूपचंद कहे तेहनें वारो । दुशमन करत गुमान है || ऐ० ॥ ५ ॥॥॥ ॥ ॐ ॥ श्री आदिजिन स्तवन ॥ * ॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥ य रहो दिल बागमें । सुन प्यारे जिनजी ॥ (कणी) चुन चुन कलीयों तोरे चरणे चढावुं । गुण अनंता तोरा रागमें ॥ सुन० ॥ ॥ १ ॥ मरुदेवी नंदन आदि जिनेश्वर । खेल अनंता तोरा बागमें || सुन ० ॥ ॥ २ ॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन । जानं विकसित बन फागमें ( सुन० ३ ) ॥ श्री नेमिजिन स्तवन लि ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ रहो रहोरे यादव दोय घमियां । दोय घमीयांरे अब चार घीयां ॥ २० ॥ एकणी ॥ प्रेमका प्याला बोहोत मसाला । पीव त मधुरी सेलमीयां ॥ रहो ० ॥ १ ॥ हाथशुं हाथ मिलाइ दीयो सांइ । फु. ला बिबा सेमीयां ॥ रहो ० ॥ २ ॥ राजुल बोमी चले गिरनारे । दी पत मोहन वेलमीयां ॥ रहो० ॥ ३ ॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन । मुक्ति वधू गुण वेलमीयां ॥ रहो ० ॥ ४ ॥ इति ॥ * ॥ ॥ *॥ ॥ * ॥ श्री गौडी पार्श्वजिन स्त० ॥ * ॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥ बिराजो बंगला में । बिराजो मंदिरमें । प्रभु गोमीचा पारश नाथ ॥ बि० ॥ ए टेक ॥ चुवा चुवा चंदन और अरगजा । केशर में गरका ॥ ० ॥ १ ॥ शिरसोनेंको बत्र बिराजे | मोतियां तपेरे खिलाड ॥ बि० ॥ २ ॥ जव सागरमें माइ पड्यो हुँ । बांहे पकरू मुऊ तार || बि० ॥ ३ ॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन। आवागमन निवार || बि० ॥ ४ ॥ ॥ ॥ श्री नेमिजिन स्तवन ॥ O ॥ ॥ ॐ ॥ कीनें देखा हमारा स्वामी । स्वामी अंतर जामीरे ॥ की ० ॥ टेक ॥ प्राठ जवनकी प्रीति प्रकाशी । नवमें गया शिवगामी रे ॥ कीनें ॥ १ ॥ सहसावनकी कुंज गलिनमें । मिल्या मुने अंतरजामीरे ॥ कीनें ॥ २ ॥ आप चले गिरनारकी ऊपर । नारी तारी केवल पामीरे ॥
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy