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________________ ४६२ रत्नसागर. ॥ * ॥ पुनः ॥ * ॥ ॥ * ॥ थांरै मुखमारीहो वारी राज । प्यारीळवी वरणी न जाय (थां०) सीस मुगट सोहै सिरटीको । कांने थांरे कुंमल सोनाय ( थां० ) ॥ १ ॥ मोहन गारी सूरत सारी । देख्यां झांरो मनको लोनाय ( थां०) नरजित नए निरखत ही । थांसुं प्रभु प्रीतमजी लगाय ( थां० ) ॥ २ ॥ जव २ पाश जिणंदजीकी सेवा। ऐसी ह्मां रे दिल मै चाव ( थां० ) । वालक है तुमही प्रजु मेरे । ह्मांरे प्रभु तुमही सहाय । ( ० ( ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥ ॥ * ॥ (राग काफी कानौ ) ॥ ५० ॥ सी विधतेने पाईरे । कछु करणी करजा ( ० ) उत्तम नर जव जैन धरम रुचि । सुगुरु सेवा सुख दाईरे । जसु पातक ऊरजा ( ० ) ॥ १ ॥ हिंसा या झूट परत्रिया । परिग्रह मद फल चोरी रे । घट जायगा दरजा ( ० ) ॥ २ ॥ तप जप संयम शीलदान कर । आनंद सुमति सुहाईरे । व जलनिधि तरजा (०) ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥ ॥॥ ॥ 11❀ 11 ( QT FITNEÌ ) || ❀ || ॥ ॐ ॥ मोहि अपनो कर जांणो प्रभुजी ॥ ( मो० ) ॥ में मतिहीण महा हठवादी । सो तुमसें नहीं बानो । राग द्वेष अरु मोह महामद 1 वाधो खोट खजानो ॥ ( प्र० मो० ) ॥ १ ॥ ए रिपु कर्म पड्यो मुऊ के मै । किसविध बूटै पानो। कुमति कदा ग्रह मांहि कलूज्यो । ज्युं मदपा न वयानो ॥ ( प्र० ) ॥ २ ॥ हूँ जववाशी तूं शिववाशी। जानें सकल जिहांनो | विरुद लाखीणो सांम संजारो । तो हिव किम चित तांणो ॥ ( ० ) ॥ ३ ॥ क्ति सदाई शिवसुख दाता। संभवनाथ कहानो । श्रीजि न सौभाग्य सूरिने निजवर । दीजै सुखप्रधानो ॥ ( प्र ० ) ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ ॥ (राग भैरवी ) (१) ॥ ॥ ॥ * ॥ नेम जिणंद जी से मखमली। मोरी रैन दिवस नित लग र हीरे ॥ ( मो० ० ) | पहली प्राय उन दोस्ती कीनी । ले पीछे बिटका यदईरे ॥ ( ने०) ॥ २ ॥ पशुवन पर प्रजु दया करीनें । शिवरमणीनें वर
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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