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________________ राग रागयांका स्तवन ४५९ air सको मोती । कोई घमी कोई पल है | ( यो० म० ) ॥ १ ॥ नदियां गहिरी नाव पुराणी । तारण हारा जिन है । रूपचंद कहे नाथ निरंजन खर जंगल घर है | ( यो० म० ) ॥ २ ॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ ॥ · || # || 1 LL || # |||| ॥ ॥ निसदिन जोनं थांरी वाटकी घर आवोनी ढोला । (नि० ) मुळ सरिखा तुक लाख है । मेरे तूंही अमोला । (नि० ) ॥ १ ॥ जोहरी मो ल करै लाजनका । मेरा लाल मोला। जिसके पटंतर को नहीं । उसका क्या मोला ॥ (नि० ) ॥ २ ॥ कोन सुनें किस करूं । किसपे मांडुं खो ला । तेरे मुखदीठे टलै । मेरे मनका गोला ॥ (नि० ) ॥ ३ ॥ मीत वि वेक कहै हितकरतुं । सुमता सुन बोला । श्राणंदघन प्रनु आवसी । सेमी रंगरोला || (नि० ) ॥ ४ ॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥ राग जैवंती ( १ ॥ ॥ ॥ ॥ आज तो हमारे नाग बीर प्रभु आए है । ( प्रा० ) चंदना खमी दुवार चित्तसें करे विचार । देखत दीदार हीये हरष नराये है || ( ० ) ॥ १ ॥ आज मेरी आशफली । अली मेरे रंगरली । विकशी यातमकली । प्रभूपात्र पाए है | ( ० ) ॥ २ ॥ धनदिन आज मेरो ग यो सब कर्म मेरो । सुकृत बहुतेरो । भगवान दिल जाए है ॥ (०) ॥ ३ ॥ सिधारथ राय नंद सोहत सरद चंद । कहै जिनचंद चित आनंद वधा है | ( ० ) ॥ ४ ॥ इति पदम् ॥ * ॥ ॥ * ॥ राग परज ॥ ॥ ॥ * ॥ वावरोरे आज मनवो मारो ॥ ( वा० ) ॥ श्रपरंगीला वाकी सेज रंगीली। ओर रंगीलो वाको सांवरोरे ॥ (० ) ॥ १ ॥ आपन आ वैवारी न लिख जै । प्रीतकरन कुं नंतावरोरे ॥ २ ॥ आनंद घन पीया निजघर वै । मिटगयो मोह संतावरोरे ॥ ( ० ) ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥ ॥ * ॥ राग जंगलो ॥ * ॥ ॥ ॐ ॥ रुपनविहारी थांरी तो बवि न्यारी ॥ (२० ) । प्रथम तीर्थकर प्रथम जिनेसर | प्रथम यती व्रत धारी हो । (रि० ) ॥ १ ॥ धनुष पांचसै मान
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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