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________________ ... लता MM ४३६ रत्नसागर. पढकै । शक्ति माफक ग्यान पूजा करें। इरियावही पमिकमें । एकलोगस्स को कानसग्ग करै। (पारकै) प्रगट लोगस्स कहै । नीचा वैठकै । मु हपत्ती पमिलेहै। दो वांदणा देवै । स्थापनाजीकों खमासमण देई (न गवन् ) अमुक तप गहणत्थं चेश्यं वंदावेह । ( इसो कहकै ) चैत्य वंदन करै । णमोत्थुणं (इत्यादि ) अरिहंत चेश्याणं० ( अन्नत्यू ) कहकै (४) थुई कहै । चोथीगाथा कहकै । नीचावैठे । णमोत्थुणं कहै । (ऊना होक) (श्रीशांतिनाथ स्वामी आराधनार्थ करेमि कान्सग्गं )। अनत्थू कहकै १ लोगस्सको कानसग्ग करै (पारकै) नमोऽर्हत सिधा । कहकै॥श्रीमते शांतिनाथाय । नमः शांति बिधायिने । त्रैलोक्य स्यामरा धीस । मुकुटाभ्यर्चितां जिये ॥१॥ यह थुई कहै (शांतिदेवता आराधना थे करेमि कानसग्गं ) अनत्थू कहै ॥ शांतिः शांतिकरः श्रीमान् । शांति दिशतु मे गुरुः । शांतिरेव सदा तेषां । येषां शांतिहे गृहे ॥१॥ यह थुई कहै । पीछे श्रुतदेवता । क्षेत्र देवता । नुवन देवताको कानसम्ग अनु क्रम में करै । एक एक नवकारको कानसग्ग करकै । अपणी २ थुई कहै । पीठे (शासनं ) देवताको कानसग्ग १ नवकारको करै ॥ या पाति शासनं जैनं । सद्य प्रत्यूह नाशनी। सानिप्रेत समृध्यर्थं । नूयानासनदेवता ॥१॥ यह थुई कहकै ( समस्त वेयावृत्तिकर आराधनार्थ करेमि कानसग्गं ) अ नत्थू० एक नवकारको कानसग्ग करै । (पारकै) श्रीशक प्रमुखा यहाः। जिनशासन संस्थिताः । देवान् देब्य स्तदन्येपि । संघरदंत्वपायतः॥१॥ यह थुई कहकै। नीचावैसे । नमोत्थुणं कहकै । जयवीयराय तांई। चैत्यवंदन करै । खमासमण देकै । नगवन् (अमुक तप गहणत्थं करेमि कानसग्गं ) एक लोगस्सको कान्सग्ग करै (पारकै ) लोगस्स कहै । खमासमण देकै । ३ नवकार गुणें । फेर खमासमण देकै (इकार नगवन् ) अमुक तप ग हण दमक नच्चरावो जी। गुरु कहै नच्चरावेमो । (ऐसा कहै ) ॥ अहएहं नंते । तुह्माणं समीवे । अमुकतवं न्वसंपऊत्ताणं विहरामि । (तंजहा) दव न। खित्तन। कालन। जावन । दवणं अमुकतवं । खित्तनणं इत्थवाअन्नत्थ वा। कालनणं जावपरिमाणं । भावनणं जावगहेणं नगहिझामि । बलेणं न
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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