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________________ ४१६ रत्नसागर. ग पणो करै। सोकन धारै चित्त लालरे। शील आनूषण आदरै । मुखK बोले सत्य लालरे। (वी०)॥१६॥ जेठ आषाढ वैशाखमें। मिगसर फागु ण माह लालरे । एषद् माशे माहिनें । व्रत ग्रहीय वम नाग लालरे (वी) ॥१७॥ तप पूरण हुवां थकां । कजमणो निरधार लालरे । कीजै शक्ति विचारनें । नव विवध प्रकार लालरे (वी०)॥१८॥बीश बीश गिणती तणा। पुस्तक पूग आदि लालरे । ग्यान तणी पूजा करै । मुंकीजे हठ वाद लालरे ( वी० ) ॥१९॥ फलवधी नगरनी श्राविका । कीधी विध चित्त लाय लालरे। जनम सफल करवा नणी। ओहीज मोद नपाय लालरे (वी० ) ॥२०॥(कलश)॥४॥ इम वीर जिनवर तणी आग्या धार चित्त मकारए । सहुदेख आगम तणी रचना रची तप विधसारए । वसुनंद सि घी चंद्र वरसे चेत्र मास सुहंकरू । मुनि केसरी शशि गब खरतर प्रणी स्तवना मन हरू ॥२१॥ इति वीश स्थानक तप स्तवनं संपूर्णम् ॥ * ॥ ॥॥अथ वीश स्थानक तपकरण विधिलि०॥॥ ॥ * ॥ तिहां प्रथम शुन मुहुर्तके दिन । नंदी स्थापना पूर्वक । सुवि हित गुरुके समीप । वीश स्थानक तप । विधिपूर्वक नच्चरै । एक नली दो माशसें लेकै ( यावत् ) उम्माशें पूरी करै । (कदाचित् ) जम्माश मध्ये पूरी नकर सकै (तो) वा नली गिणती में नहीं। और नवी करणी पमै । एक म्लीके वीश पद है (तिहां) कोई वीश दिनमें। वीशो पद जूदा २ गिणे कोई वीशों दिनमें एकजपद गिणें । दूसरै वीशों दिनमें दूसरो पद । (ऐसें ) वीशों पदकी वीश ली करै । तिहां पदाराधनके दिन प्रबल शक्तिवंत । अध्म तप करिकै आराधै । वीश अहमें एकनी होय (ऐसें) वीश नली (४०० ) अहमें आराधै । और तिसमें होनशक्ति बह तप करकै आराधै। तिससे होनशक्ति चौविहार उपवास करके आराधै । तिससें हीन शक्ति त्रिविहार उपवास करके आराधै । तिससे हीन शक्ति आंबिल (तथा) ति विहार एकाशणा करके आराधे । तिहां शक्तिवान प्राणी । सर्व तपस्याके दिन अंठ पहरी पोसह करै । (हीन शक्ति) दिन पोसह करै । वीशों पद पोसह सेती आराधै ( जो ) पोसह शक्ति सर्व पदमें न हो (तो)
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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