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________________ .. सिद्धगिरी बिंबसंख्या गर्जित रास... ३७५ सा० ॥ सहु देखे निजरूप हो। परमातम पदकुं पिगंणिये ॥ सा० ॥ १३ ॥ तुं मुफ बबलहे सदा ॥ सा० ॥ तुम गुण अपरं पारहो । परमातम पद तुंही अ॥ सा० ॥ १४ ॥ पिण निश्चे ब्यवहार में ॥ सा० ॥ निश् नयकुं जांणहो । व्यवहारे शुद्ध क्रिया करी ॥ सा० ॥ १५ ॥ निज निज शक्ती अनुसरे ॥ सा० ॥ पालै व्रत मन शुषहो । नव पदनो ध्यान हिये धरी। सा० ॥ १६ ॥ सिघ गिरी प्रवहण चढी ॥ सा० ॥ वगै शिवपुर जायहो। जव सायर पार पामो सुखे ॥ सा० ॥ १७॥ इण परि सुमता आयके । सा० ॥ समझावे नवि चित्तहो । सुखपांमे समझे नविजिके ॥ सा०॥ ॥ * ॥ (हाः)॥ इणपर सुमता बयणसुण । आसन नबी जीव । हरख धरी व्रत आदरे। धर्म अमृत रस पीव ॥१॥ सिद्ध गिरी इक अवसरे । आयाबीर जिणंद । इन्द्रादिकसहु आयनें । वांद्या धर आणंद ॥ २ ॥ सिध गिरीना गु णसहू । सुणवा जवि चितधार । प्रनुपद पंकज नमण कर । बैग करी इकतार ॥३॥ जगवन दीनी देशना । सिद्धगिरी सम आज । जगमें कोई तीरथ नहीं। परतिख शिवपुर पाज॥४॥काल अनादीसें रह्यो। नाम उगम पर सिक साधु अनंता इण गिरे। अणसण लही सिव लिच॥५॥ नामलियां सहुन यटले। मुख दालिद्र हुये दूर। दिनदिन अधकीसंपदा। पांमे सुख भरपूर॥६॥ ॥ ॥ (ढाल २)॥ जंबूझीप माहे कह्योरे लाल दक्षिण जरत प्रमाणरे । (नविकनर) सहु देशां मांहे सिरैरे लाल । सोरठ देश वखांणरे ॥ १ ॥ इण गिरनी महमा बीरे लाल । कहे न सके कोई पाररे॥ न०॥ ( बीर जिनंदे भाषियोरेलाल)॥२॥ बिमलाचल प्रणमुं सदारे लाल । श्राध गुणां समनांमरे ॥४०॥ घर बैठां शुन्न नावथीरे लाल । ध्यान कीयां सुख पांमरे॥न० ॥ बी० ॥ ३ ॥ प्रथम अनादी कालमेरे लाल । अनंत सीधा इहां आयरे ॥ न० ॥ अनंत साधु बलि सीधसीरेलाल । प्रण मुंए गिरिरायरे ॥०॥ बी० ॥ ४॥ फागुण सुदि दशमी दिने रे लाल । पूरब निनाएं वाररे॥०॥ आदि जिणंद समोसरयारे लाल। चरण नमुंमु खकाररे ॥ ज० ॥ बी० ॥ पुंमरीक गणधर नमुरे लाल । पंचकोमि मुनिसाथरे । न० ॥ चैत्री पूनम दिन आयनेंरे लाल । काली शिवपुर बा
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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