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________________ ३६६ रत्नसागर. ॥ ॥ अथ (९) अणुत्तरोवाई अंग सिशाय लि० ॥ * ॥ ॥ * ॥ ( ढाल नणदल बिंदलीलै ए चाल)॥ * ॥ नवमो अंग अणु त्तरो वाई। एहनीरुच मुऊनें आईहो ( श्रावक सूत्र सुणो ) सूत्र सुणो हित आणी। एतो वीतरागनी वाणी हो (श्राव०) ॥ १ ॥ जसु कल्पाव तंसिकानामैं । सोहै न्वांग प्रकामें हो (श्रा ० ) एतो आगमनें अनुकूला। मार्नु मेरु शिखरनी चूला हो । (श्रा० )॥२॥ एतो सूत्रनो नाम सुणीजै । तिम तिम अंतर गति नीजै हो (श्रा०) । प्रगटै नवलसनेहा । एहथी न लसै मोरी देहा हो (श्रा० )॥३॥ अणुत्तर सुरपद पाया । तेहना गुण इणमें गाया हो (श्रा०)। नगरादिक नाव वखाण्या। तेतो है अंगै आ या हो (श्रा०)॥४॥ इहां एक सुयखंध वारू । त्रिणवर्ग वली मनोहारू हो (श्रा०) । उद्देशा त्रिपासनूरा । संख्यात सहस पद पूरा हो (श्रा०) ॥ ५ ॥ सूत्र सुणावू अमे तेहनें । साची श्रधा हुय जेहने हो (श्रा० ) श्रोताथीप्रीत लगावू । निंदकनें मुंह न लगाईं हो (श्रा० )॥ ६ ॥ जे सुणतां करै बकोर । तेतो माणस नही पिण ढोरहो ( श्रा० ) । कवि बि नयचंद्र कहै साचो। श्रुत रंगै सहुको राचोहो (श्रा० ) ॥७॥ ॥ इति ॥८॥ ॥अथ (१०) प्रष्णव्याकरण सिशाय लि० ॥ ॥ . ॥ ॥ (ढाल ) आघा आम पधारो पूज (एहनी ) ॥ ॥दशमो अं ग सुरंग सुहावै । प्रष्णव्याकरण नामें । सूत्र कल्पतरु सेवै ते तो। चिदा नंद फल पामें। (आवो २ गुणना जाण । तुमनें सूत्र सुणावू ) । (टेक) ॥ १ ॥ पुप्फकली ज्यु परिमल महकै । गुरु परागर्ने रागै । तिम नपांग पु फिका एहनो। जोर जुगति करि जागै । ( आवो० ) ॥ २ ॥ अंगुष्टा दिक जिहां प्रकास्या । प्रष्णादिक अतिरूमा । ते अठोत्तर सत एतो । सूत्र मध्य मणि चूमा (आ० ) ॥३॥ आश्रव धार पांच इहां प्राण्यां पांचे संबर धारा । महा मंत्र वाणीमां लहीयै । लबधि नेद सुखकारा । (आ.) ॥४॥ सुय खंध एक दशमें अंगै । पणयालीस अझयणा । पणयालीस नदेशवलीपद । सहस संख्यात नीरयणा (आ.) ॥५॥ जे नर सूत्रसुणे नही कानें । केवल पोष काया । मायामांहि रहै लपटाणा ।
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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