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________________ रत्नसागर.. देवेंद्र, दानवेंद्र नारद, इनोंने (तथा) नुदाई राजाकी, राणी प्रनावतीने द्रोपदीने नाटक किया (और) रावण प्रमुख, कई जीवोंने अष्टापदादि ऊपर नाटक करके, तीर्थकर गोत्र नपार्जन किया (तैसें) प्रजूके सन्मुख शंकारहित होके । नत्तम पुरुष नाटक करे ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ 8 ॥ ॥ ॥ (अब ) जल चंदन पुष्पादिकसें पूजा करै (सो) अंगपूजा ॥१॥ प्रचूके सन्मुख नैवेद्य प्रमुख चढावै (सो) अग्र पूजा ॥२॥ प्र नूके सन्मुख शकस्तवादि गीत गान नाटकादिक करै (सो) नाव पूजा ॥२॥ ( यह द्रव्य पूजाका विचार गर्जित चोथा त्रिक कहा ) ॥१॥ (अब पांचमा त्रिक)॥ ॥ तीन अवस्था विचारणी ॥ पिंमस्थ (१) प दस्थ (२) रूपातीत ॥३॥ इसमें पिमस्थ अवस्थाके तीन नेद ॥ जन्मा वस्था॥१॥ राज्यावस्था॥२॥श्रमणावस्था॥३॥ (और) केवल अ वस्थाको विचार करणा (सो) पदस्थ अवस्था ॥ निरंजनाकार (सो) सिघावस्था । तिसकुं रूपातीत अवस्था कहतेहै ॥ ॥ (अबउहात्रिक) तीन दिशा बगेमके प्रनूके सामने निजर रखै । नर्घ १॥अध २ ॥ तिर जी ३॥ दहणी । वांइ। पिगमी । निजर नही करै ॥ ॥ (अब सातमा त्रिक) तीन वेर धरती प्रमार्जकैं। उस ठिकाणे चैत्यवंदन करै ॥ ॥ (अब आठमा त्रिक)॥ ॥ वर्णादिक तीन संपदाका ॥ हरफशुधन चारण करै (सो ) वर्ण शुधि ॥ १ ॥ हरफोंके अर्थपर आलंबन रक्खै (सो) अर्थशुधि २ ॥ आलंबन एक जिन प्रतिमाका रक्खै ( सो ) मन सुधि ॥ ३॥ ॥ ( अब नवमात्रिक ) ॥ * ॥ तीन मुद्रा करनी ॥ जोग मुद्रा १॥ जिनमुद्रा २॥ मुक्ताशुक्ति मुद्रा ३॥ (इसमें ) जोग मुद्रा किसकुं कहते है ॥ पद्म कोशाकारै । दोनुं हाथ परस्पर अंगु ली मिलानी। एजोग मुद्रायें सक्रस्तव कहिये १॥ कानसग्ग मुद्रा (सो) जिन मुद्रा २॥ (और) दोसीपका जोमा तिस आकार हाथ रखना। (सो) मुक्ता शुक्तिमुद्रा ३॥ इस मुद्रासें प्रणिधान (जय वीयराय) इत्यादि करें (अब दशमात्रिक)॥ ॥ प्रणिधान तीन ॥ जिन बंदन प्रणिधान १॥ मुनि वंदन प्रणिधान २। प्रार्थना प्रणिधान ३॥इसमें (जो) जावंति चे
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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