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________________ ૧૮૮ रत्नसागर. जगवंताणं जयतुर । नमो जिणाणं सहीए । नमो अविचल आदि गराणं । सहीए नमो अरिहंताणं ॥ १८॥ सही०॥ इति श्री सर्वजिन नमस्कारः॥ (इहां) एकलोगस्सनो कानस्सग्ग "चंदेसु निम्मलयरा” सूधी एक जण करे ते कानस्सग्ग पारी । पली चार थोयो कहेवी (ते लखीयें जीयें.)॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥अथ थोय प्रारभ्यते॥॥ ॥ * ॥ षनदेव नमुं गुण निर्मला। दूध मांहे जिम नेली सीतोपला। विमल शील तणा सिणगार । नवनव मुझने चित्ते रुचै ॥१॥ जेह अनंत थया जिनकेवली। जेह हसे विचरंतां जेवली। जेह असासय सासय त्रिहुं जगें। जिन पमिमा प्रणमुं नित झगमगे॥२॥सरस आगम दीर महोदधी त्रिपदी गंग तरंग करी वधी । नविक देह सदा पावन करे । उरित ताप रजो मल अपहरे॥३॥ जिनप शासन नासन कारिका । सुर सुरी जिन आणा धारिका । ज्ञान विमल प्रनुतायें दीपता। रित पुष्ट तणा जय जीप ता॥४॥ इति श्री शाश्वत अशाश्वत जिन स्तुति ॥ २५॥ ॥ॐ॥ ॥ अथ विधिः ॥ ॥ ॥ ॥ इहां एकजण मोटी शांति कहे ( अने) बीजा सर्व कान सग्गमां सांजलै । पी सर्वे जणा कानसग्ग पारीने । प्रगट एक लोग्गस्स पूरो कहै। पी बेसीने, एकवीश नवकार, प्रगटपणे सर्व जण गणे (पी) सर्वेजण, मुख थकी आवी रीतें कहेः-श्रीशेजुंजायनमः॥१॥श्रीपुंमरीकाय नमः॥२॥श्री सिद्ध क्षेत्राय नमः ॥३॥श्री विमलाचलाय नमः॥४॥ श्री सुरगिरये नमः॥५॥श्री महागिरये नमः॥६॥श्री पुण्यराशये न मः॥७॥श्रीपर्वताय नमः॥८॥श्री पर्वतेंद्राय नमः॥९॥ श्री महा तीर्थाय नमः ॥१० ॥ श्रीशाश्वताय नमः ॥ ११ ॥ श्रीदृढशक्तये नमः ॥१२॥ श्री मुक्तिनिलयाय नमः॥ १३ ॥ श्रीपुष्पदंताय नमः ॥१४॥ श्री महापद्माय नमः॥ १५॥ श्री पृथ्वीपीठाय नमः १६ ॥ श्री सूरन द्र गिरये नमः॥ १७ ॥ श्री कैलासगिरये नमः॥१८॥ श्री पातालमू लाय नमः ॥ १९॥ श्री अकर्मकत्रेय नमः ॥ २० ॥ श्री सर्वकामपूर
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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