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________________ २४ जिनचैत्य, थुई, स्त०, चौमाशी देववंदन. १८५ अनुपासजिणेसर जुवन दिनेसर संकरो ॥ साहिबजी ॥ ली ला अलवेसर धीरम मंदर जूधरो ॥ साहिबजी॥ तुं अगम अगोचर कृत शुचि सुंदर संवरो॥सा०॥ पद नमित पुरंदर तर्नु उबि निरमल जलधरो। सा० ॥१॥ तुं अदय अरूपी ब्रह्मसरूपी ध्यानमां ॥ सा॥ ध्याये जे जोगी तुमगुण जोगी झानमां ॥ सा० ॥ व्यवहार प्रकासी निश्चयवासी निजमतें ॥सा०॥ जिन आतम दरसी अमल अजेसी नयमतें ॥सा॥ ॥२॥ षट दर्शन नासे युक्ति निरासें शासनें ॥सा ॥ स्यादवाद विशा लें सहज समाजे जावनें ॥सा०॥ तुं ज्ञानने ज्ञानें आतम ध्याने आत मा ॥ सा०॥ परमागम वेदी नेद अनेदी नही तमा ॥ सा० ॥३॥ एक अनेके बहुत विवेकें देखियें ॥सा॥ आतम ततकामी अगुण अ कामी लेखियें ॥ सा०॥सविगुण आरामी बगे बहु नामी ध्यानमां॥ सा०॥ आपेगत नामी अंतरजामी झानमां ॥सा०॥४॥ तुं अनीयत चारी नि यत विचारी योगमां ॥सा०॥ अध्यातम सेली एम बहु फेली आगमें॥ सा॥तुं धर्म संन्यासी सहज विलासी समगुणें ॥सा०॥ मोहारि विना शी तुं जित काशी कवितणे ॥सा०॥५॥ ज्ञान दर्शन खायक गुणमणी लायक नाथ ॥ सा०॥पुर्गति पुःख घायक गुणनिधि दायक हाथ ॥ सा०॥ जित मन मथ सायक त्रिनुवन नायक रंजणो ॥ सा०॥अनेकांति एकांती तुं वेदांती अगंजणो ॥ सा०॥६॥ध्यानाननयोगें पुदगल जोगें तें दह्या ॥ सा०॥ अंतररिपु हणीया मूलथी खणीया नविरह्या ॥ सा ॥ तुंहेतु समीयो सुरवर नमियो सहुकह।सा०॥ए जगथी न्यारो चरित्र तुमारो कुणलहे ॥ सा० ॥७॥ इम तुम गुण थुणीयें कर्मनें हणीये पलकमां ॥ सा०॥ पण नवि अवगणिये सेवक गणीयें ललकमां ॥ सा०॥ वामाचे नंदा त्रिजुवन इंदा सं थुणे ॥सा०॥ ज्ञानविमल सूरिंदा तुमपय बंदा गुण नणसा०॥८॥इति॥॥ ॥ ॥ अथ श्री वर्धमान जिन चैत्यवंदन ॥१॥ ॥ॐ॥शुदि आषाढ उह दिवसें प्राणतथी चवीया । तेरस चैत्रह शुदि दिने त्रिशलायें जणीया । मृगशिर वदि दशमी दिनें आपे संजम आराधे २४
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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