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रत्नसागर..
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थ थोय प्रारभ्यते ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ अरजिन ए जुहारूं कर्मनो क्लेश वारूं । अहनिश संजारू ताह रूं नाम धारूं । कृत जय जय कारूं प्राप्त संसार सारूं । नविहोय ते साख आपणो आप तारूं ॥ १ ॥ ॥
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॥ * ॥ अथ श्री मल्लिनाथ चैत्यवंदन ॥ ॥
॥ ॐ ॥ चव्या जयंत विमानथी फागुण शुदि चनथें । भृगशिर शुदि इग्यारसें जनम्या निग्रंथे । ज्ञान लह्या एकदिने कल्याणक तीन । फागु सुदि बारमें लहे शिव सदन दीन । मल्लिजिणेसर नीजमाए । नगली शमा जिनराज । णपरण्या अणनूप पद । जवजल तरण जहाज ॥ १९ ॥ ॥ * ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥ * ॥
॥ * ॥ जिन मल्ली महिला वानबे जेहनीला । ए अचरिज लीला स्त्री तणें नाम पीला । दुशमन सवि पील्या स्वामि जोने वसीला । अविचल सुख लीला दीजियें सुणि रंगीला ॥ १९ ॥ इति मल्लिजिन स्तुति ॥ * ॥ ॥ * ॥ श्री मुनि सुव्रत जिन चैत्यवंदन ॥ * ॥
॥ * ॥ पराजितथी आविया । श्रावण शुदि पूनम । प्राग्म जेह अंधारी । थयो सुव्रत जनम । फागुण शुदि बारस व्रते । वदि बारसें ज्ञान फागुणनी तेम जेवनी । नवमी कृष्ण निर्वाण । वर्ण श्याम गुण नऊला । ति हुय करे प्रकाश । ज्ञान विमल जिनराजना । सुरनर नायक दास ||२०|| थथोय प्रारभ्यते ॥
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॥ ॥ ॥ मुनि सुव्रत स्वामी हुं नमुं शीश नामी । मुऊ अंतर जामी का मदाता कामी । दुःखदोहग वामी पुण्यथी सेव पामी । शम्या सर्व दा रामी राज्यता पूर्ण पामी ॥ १ ॥ इति ॥ २० ॥
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॥ * ॥ अथ श्री नमीनाथ चैत्यवंदन ॥ * ॥
॥ * ॥ शो शुदि पूनम दिने प्राणतथी प्राया । श्रावणवदि आ म दिने नमी जिनवर जाया । वदि नवमी आषाढनी थया तिहां अणगा