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________________ २४ जिनचैत्य, थुई, स्त०, चौमासी देववंदन. १७९ चौदशी । प्रमावसी संजम । माह शुदि बीजे केवली । चौदशि आषा ढी । यदि शिव पाम्या कर्म कष्ट । सवि दूरे काढी । वासुपूज्य जिन बारमा ए । विद्रुम रंगें काय । श्री नयविमल कहे इस्युं । जिन नमतां सुख थाय ॥ ॥ ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥ ॥ ॥ * ॥ वसुदेव नृप तात । श्री जयादेवी मात । अरुण कमलगात । महिष लंबन विख्यात । जसगुण अवदात। शीत जाणे निवात । होय नित सुखशात । ध्यावतां दिवस रात ॥ १ ॥ इति ॥ * ॥ १२ ॥ ॥ * ॥ अथ विमलनाथ चैत्यवंदन ॥ ॥ * ॥ ॥ ॥ * ॥ म कल्पथकी चव्या । माधव शुदि बारस | शुद्धि महात्रीजें जया । तस चोथे व्रत रस । शुदि पोष बहें लह्या । वर निर्मल केवल । यदि सातमि आषाढनी । पाम्या पद अविचल । विमल जिलेसर वंदि ए । ज्ञान बिमल करी चित्त । तेरसमो जिन नितु दिये । पुएय परिवल वित्त ॥ १ ॥ इति ॥ ॥ १३ ॥ ॥ * ॥ ॥ ॐ ॥ ॥ *॥ ॥ * ॥ थ थोय प्रारभ्यते ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ विमल विमल नावे वदतां दुःख जावे । नव निधि घर वै विश्वमां मान पावे । सुवर लंबन फावे नोमिनर स्वेद थावे । मनु विनति जपावे । स्वामिनुं ध्यान ध्यावे ॥ १३ ॥ इति विमलनाथ स्तुति ॥ ॥ अथ श्री अनंतनाथ चैत्यवंदन ॥ * ॥ ॥ * ॥ प्राणत थकी चविया इहां । श्रावणवदि सातम | वैशाखवदि तेरसी दिनें । जनम्या चनदस रातम । वदि वैशाखे चनदसि । केवल पुण्य पा म्या । चैत्रशुदि पंचमीदिने । शिववनिता काम्या । अनंतजिनेश्वर चनदमा ए । कीधा दुष्मन अंत। ज्ञानविमल कहेनामथी। तेज प्रताप अनंत ॥ १४ ॥ ॥ * ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥ ॥ ॥ * ॥ अनंत जिन नमीजें कर्मनी कोट बीजें । शिव सुख फल ली जें सिधि लीला वरीजें । बोधि बीज मोह दीजें एटलं काज कीजें । मुऊ मन प्रति रोजे स्वामिनुं कार्य सीजे ॥ १ ॥ * ॥ १४ ॥ 11 # !!
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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