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________________ २४ जिनचै० स्त० थुई, चौमाशी देववंदन. १७७ रक्त तनु कांति फावे । दुःख निकट नावे | संतती सौख्य पावे । प्रनु गुणगण ध्यावे । अष्ट महा सिद्धि थावे ॥ १ ॥ ॥ ६ ॥ 11 11 ॥ ॥ अथ श्री सुपार्श्वजिन चैत्य वंदन ॥ ॥ ॥ * ॥ बघा ग्रैवेयकथी चवी । जिनराज सुपास । जादरवा वदि प्राठ मे । अवतरिया खास । जेठ सुक्ल बारसी जएया । तस तेरसे संजम । फा aashaa | शिव लहे तस सत्तमि । सत्तम जिनवर नामथी ए । साते ईति समंत । ज्ञान विमल सूरि नितु लहे । तेज प्रताप महंत ॥ १ ॥ ॥ * ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥ ॥ ॥ * ॥ फले कामित आशे नामथी दुःख नाशे । महिम महि प्रकाशे सा तमा श्री सुपासें । सुरनर जस दास । संपदानो निवास । गाय जवि गुणरास: जेहना घरी वास ॥ १ ॥ इति ॥ * ॥ ७ ॥ ॥ ॥ अथ श्री चंद्र प्रजजिन चैत्य वंदन ॥ ॥ * ॥ चंद्रप्रत्र जिन आठमा । चंद्रपत्र सम देह | अवतरीया विजय तथी । वदि पंचमी चैत्रेह । पोष वदि बारसें जनमीया । तस तेरसे साध फागुण वदिनी सातमे । केवल निराबाध । प्राद्रव सातम शिव लह्या ए । पूरी पूरण ध्यान | महासिद्धि संपजे । नय कहे जिन अभिधान ॥ १ ॥ ॥ * ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥ ॥ ॥ * ॥ शुभ नरगति पामी नद्यमें धर्म्मधामी । जिन नमो शिरनामी चंद्र पन नाम स्वामी । मुऊ अंतरजामी जेहमां नहिय खामी । शिवगति वरगामी सेवना पुरायें पामी ॥ १ ॥ इति ॥ ८ ॥ ॥ ॥ अथ सुविधिनाथ चैत्यवंदन ॥ * ॥ ॥ * ॥ गोरा सुविध जिणंद नाम । बीजं पुप्फ दंत । फागुण वदि नव में चव्या । मेहली सुर आनंत । मृग शिर वदि पंचमें जाया । तस बढ़ें दिक्षा । काती शुदि त्रीजें केवली । दिये बहु परें शिक्षा | शुद्धि नवमी जा द्रवातणी । जर अमर पद दोय । धीर विमल सेवक कहे । ए नमतां सुखहोय ॥ १ ॥ इति स्तवनं ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ * * ॥
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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