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________________ १७४ रत्नसागर. आषाढनी । शर्के संस्तविया । अहमी चैत्रह बदि तणी । दिवसें अनुजा या । दिदा पण तिणहीज दिने । चननाणी थाया । फागण वदि इग्या रसी ए । ज्ञान लहे शुन ध्यान । महा वदि तेरशें शिव लह्या । परमानंद निधान ॥ १॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ ॥ इहां नमुत्थुणं । अरिहंत चेश्याणं० । वंदण वत्तिया कही। एक नवकारनो कावसग्ग पारी । ४ थुई क्रमसें कहियें। ते लिखियै जीयें। ॥॥ अथ थोय जोमो प्रारंभः॥॥ ॥॥ षन जिन सुहाया श्री मरुदेवी माया । कनक वरण का या मंगला जासजाया । बृषन लंडन पाया देवनर नारी गाया । पण सय धनु गया ते प्रनु ध्यान ध्याया ॥ १ ॥ ए तीरथ जाणी जिन त्रेवी श नदार । एक नेम विना सवि समवसरया निरधार । गिरि कमणे आ वी पोहता गढ गिरनार । चैत्री पूनम दिने ते वंदूं जय कार ॥२॥ झाता धर्म कथांगें अंत गम सुत्र मकार । सिधा चलें सीधा बोल्या बहु अणगार । ते माटें ए गिरि सवि तीरथ शिरदार । जिन बेटे थावे । सुख संपति विस्तार ॥ ३ ॥ गौमुख चक्केश्वरी शासननी रखवाल । ए ती स्थ केरी सानिध करे संजाल । गिरुत्रो जस महिमा संप्रति कालें जास। श्रीज्ञान विमल सूरी नामे लील विलास ॥ ४॥ इति ॥ ॥१॥ . ॥ * ॥ इहां। नमुत्थुणं, जावंती (बे) कही नमोर्हत् कही स्तवन कहे. ॥ ॥ अथ श्रीआदिजिन स्तवन प्रारंजः ।। * ॥ ॥ ॥ (ललनानी देशी) आदि करन अरिहंतजी । नलगमी अवधार ललना ॥ प्रथम जिणेसर प्रणमीयें । वंचित फल दातार ॥ ललना ॥१॥ आदिकरण अरिहंतजी (ए आंकणी) नपगारी अवनी तले । गुण अनंत जगवान ॥ ललना ॥ अविनाशी प्रत्यकला । वरते अतिशय धाम ॥ खलना ॥ ० ॥२॥ गृहवासें पण जेहनें । अमृत फलनो आहार ॥ल लना। ते अमृत फलने लहै । एजुगतुं निरधार॥ललना॥आ॥३॥वंश इहवाग ने जेहनो। चढतो रस सुविशेष ॥ ललना॥जरतादिक थया केवली अनुन्नव फल रस देख ॥ ललना ॥ आ॥४॥ नाजिराय कुलमायो
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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