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________________ पांचतिथ चैत्यवंदनः स्तुति.. १४७ मीया। प्रनु नाण निर्वाण ॥६॥ एम अनंत चौवीशीयें । हुआ बहुत कल्याण । जिन नत्तम पद पद्मने । नमतां होय सुख खाण ॥७॥इति ।। ॥ ग्यान पंचमीको चैत्य वंदन ॥ ॥ ॥ ॥ त्रिगडे बेठा वीरजिन । नाखे नविजन आगे। त्रिकरणशुं त्रि हुँ लोक जन । निसुणो मन रागें ॥१॥ आराहो लवि मावसे । पांच म अजुवाली।झान आराधन कारणें । येहज तिथि निहाली ॥ २॥ झान विना पशु सारिखा। जाणो इण संसार । ज्ञान आराधनथी लद्यु । शिवपद सुखश्रीकार ॥३॥ ज्ञान रहित क्रिया कही। काश कुसुम नप मान । लोका लोकप्रकाशकर । ज्ञान एक परधान ॥ ४॥ ज्ञानी सासो सासमें । करे कर्मनो खेह । पूर्व कोमी वरसां लगे । अज्ञानेंकरे तेह ॥५॥ देश आराधक क्रिया कही । सर्व आराधकज्ञान । ज्ञान तणो महिमा घणो । अंग पांचमे जगवान ॥६॥ पंच माश लघु पंचमी । जावजीव नत्कृष्टी। पंच वरश पंच माशनी । पंचमी करो शुनदृष्टी ॥ ७॥ एकावनही पंचनो ए । कानसग्ग लोगस्स केरो। ऊजमणुं करोनावशुं । टाले नव फेरो ॥८॥ इण परें पंचमी भाराहीयें ए । आणी नाव अपार । वरदत्त गुण मंजरी परें। रंग विजय लहोसार ॥९॥इति चैत्य वंदनं ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ अष्टमीको चैत्य वंदन ॥ ॥ महा शुदि आठमनें दीने । विजया सुत जायो । तेम फागुण शुदि आठमें । संजव चव आयो ॥१॥ चइतर वदनी आठमें । जनम्या शेषन जिणंद । दिदा पण ए दिन लही। हुआ प्रथम मुनिचंद ॥२॥ माधवशुदि आठम दिने । आठ कर्म करया दूर । अनिनंदन चोथा प्रनु । पाम्या सुख जरपूर ॥३॥ एहीज आठम ऊजली । जन्म्या सुमति जिणं द । आठजाति कलशें करी । न्हवरावे सुर इंद्र ॥४॥ जन्म्या जेठवदि आग्में । मुनि सुव्रत स्वामी । नेम आषाढ शुदि आपमें । पंचमी गति पामी॥५॥ श्रावण वदनी आठमें । नमि जन्म्या जगनाण। तिम श्रावण शुदि आठमें । पासजीनो निर्वाण ॥ ६ ॥ जावा वदि आठम दिने चविया स्वामी सुपास। जिन नत्तम पदपद्मने । सेव्यांथी शिववास ॥७॥
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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