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________________ नेमराजुल, ग्राऊसिज्ञाय, ५ तिथी चैत्यवंदन. १४५ रवि ग्रहा व धरण द्र शांत्यंबिका । दिगपालाः सकपर्द्दिगो मुखगणा श्रक्रेश्वरी भारती । येन्ये ज्ञानतपक्रिया व्रतिविधिः श्रीतीर्थयात्रादिषु । श्री संघस्य तुरा चतुर्विध सुरा स्ते संतु मकराः ॥ ४ ॥ इति श्रीपंचतीर्थ ॥ ॐ ॥ ॥ * ॥ नेमराजुल सिज्ञाय ॥ ॥ ॥ * ॥ नदी जमुनाके तीर क्रमे दोय पंखीया (ए देशी ) पिनजी पि नजीरे नाम जपुं दिन रातियां ॥ पिनजी चाल्या परदेश । तपे मोरी बातीयां । पग पग जोती वाट वालेसर कब मिले । नीर विछोह्यां मीनके । तेव ॥ १ ॥ सुंदर मंदिर सेज साहिब विण नविगमे । जिहारे वालेसर नाम तिहां मारू मन नमे । जो होवे सऊन दूर तोहि पासें बसे । किहां सायर किहां चंद देखी मन नवसे ॥ २ ॥ निःस्नेहीभुं प्रीत मकरजोको सही | पतंग जलावे देह दीपक मनमें नहीं । माणसनो विजौग म होजो केहनें । सालेरे साल समान हइमां तेहने ॥ ३ ॥ विरह व्यथानी पी जोवन वय प्रति दहे । जेनो पियु परदेश ते माणस दुःख सहे । कुरी कुरी पंजर कीध, काया कमला जिसी । हजु न आ व्योम मजी नयणें हसी ॥ ४ ॥ जेने जेहशुं रंग टाल्यो ते नवी टलै चकवा रयणी विजोग तेतो दिवसें मलै । प्रांबा केरो स्वाद निंबू ते न वि करे | जे नाह्या गंगा नीर ते बिल्लर केम तरे ॥ ५ ॥ जे रम्या मालती फूल धत्तूरे केम रमे । जेहनें घीयशुं प्रेम ने तेले केम जमें। जेहनें चतुरशुं नेह ते वर शुं करे | नव जोबन तजी प्रेम वैरागीथे फरे ॥ ६ ॥ रा रूपनिधान के पोहती सहसावनें । जइ वांद्या प्रभु नेम संजम ले ई ऐकमनें । पांयां केवल ज्ञान के पोहती मन रख्नी । रूपविजय प्रनुनेम लेटे आशा फजी ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ 1111 S M ॥ * ॥ ॥ * ॥ ऊखा सिज्ञायः ॥ ॥ * ॥ माखो तूटानें सांधो को नहींरे । ति कारण मकरो जीव नादरे। जरा आव्याने शरणं को नहींरे । हिंसा बोमीनें दया पालरे ॥ आ० ॥ १ ॥ कुटुंब कबीला नारी कारणेंरे । मूरख संच्यां बहुला पाप र। चोर तणी परे की क्रूरशेरे । सहीश इहलोक परलोक संतापरे ॥ १९
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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