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________________ रत्नसागर.. ॥श्री०॥४॥अधमनधारण गे तुमे । दूर हरो नवपुःखलालरे । कहे जिन हरष मयाकरी। दे ज्यो अविचल सुरकलालरे (श्री०॥५॥ ॥इति सीमंधरजिनस्तवनम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥श्री सिद्धगिरी चैत्यवंदन ॥१॥ ॥ जय जय नाजिनरिंद नंद सिघाचलमंमण । जय २ प्रथम जिणंद चंद नव पुःख विहंमण । जयजय साधु सुरिंद वृंद वंदिय परमेश्वर । जय २ जगदा नंद कंद श्री रिषन जिनेश्वर ॥ १॥ अमृत समजिन धर्म नोए। दायक जगमें जाण । त्वत्पद पंकज प्रीतिधर । निसदिन नमत कल्याण ॥२॥ इति०॥ ॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥सिघो विजाइचक्की नमि विनमि मुणी घुमरियो मुणिं दो वाली पनि संबो जरह सुग मुणी सेलगो पंथगो अरामो कोमी पंच द्रावड नरवई नारन पंडुपुत्ता। मुत्ताएवं अणेगे विमल गिरि महं तित्थमेयं नमामि ॥१॥ ॥॥अथ सिद्धगिरी स्तवन ॥ ॥ ॥॥आज पुंमर गिरिलेटिया । प्रगट्यो परमानंदा । मोह तिमर दूरेजए । जागा नवनयफंदा॥०॥१॥ मरुदेवाजीकेलामला । नाजिराय के नंदा रिषजजिनेसर सुखकरू । दिनमणिज्युदीपंदा ॥ आ० ॥ २ ॥ पूर बनिनाएं रायणतले । आया प्रथम जिणंदा। नेमिविना सहुजिनवरै । इन गिरि कोंसेवंदा॥ आ० ॥३॥ कलुकाले इण जरतमें। तारण काऊ समंदा। अनंत जीव मुगतैगया। वीतराग नापिंदा॥आ० ॥४॥ चौमुख जिननें आदले । नववसिबिंब सोहंदा । आत्मागुण निरमलकरी । मोहन सुःखपा वंदा॥०॥५॥ ॥ ॥ इति सिगिरी स्तवनम् ॥ॐ॥ ॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥सिघाचल गिरिनेव्यारे । धन्य नाग हमारा। सि० (टेरे ) एगि रखरनी महिमा मोटी । कहतांनावेपारा । रायण रूंख समोसरया स्वामी । पूरब निनाणूं वारारे॥धन्य० सिघा० १॥ मूलनायक श्रीआदिजिनेसर। चौमुख प्रतिमा चारा । अष्ट द्रव्यसुं पूजालावे । समाकित मूल आधारारे॥
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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