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________________ रत्नसागर. ॥महिमा जिणकी महिमें महिमें जिन दीनो महा इक ग्यान नगीनो, दूरजग्यो भ्रमसोतम देषत पूरजग्यो परकास नवीनो, देतहि देतहि दूनोवधै अरु खायोहि खूटत नाहिं खजीनो, ऐसो पसाय कियो गुरुराय तिणें ध्रमसी पदपंकज लीनो ॥१॥ ॥अज्ञानतिमिरान्धानां । ज्ञानाञ्जनशलाकया ॥ नेत्रमुन्मीलितं येन ॥ तस्मै श्री गुरवे नमः॥१॥ ॥श्रीसरस्वत्यै नमः॥श्री सारदायै नमः। ॥ सरस्वती महानागे। बरदे कामरूपिणी । विश्वरूपी विशालाक्षी। दे विद्या परमेश्वरी ॥१॥ सरस्वती मया दृष्टा । बीणापुस्तक धारिणी । हंसबाहन संयुक्ता । बिद्या दान बरप्रदा ॥२॥ ॥दीर्घाक्षरें सरस्वती नमस्कार॥ सिद्धारूपी साची देवा सारे जीकी नीकी सेवा रागे आए लागे पाए जागे मोटी माई है, चंगी रंगी वीणा वावे रागे सारे रागे गावे हावे नावै सोनापावे ग्याता जाकुं गाई है, हंसी कैसी चाली चाले पूजी बंदी पीडा टाले लीला सेती लालेपाले सुद्धी बुद्धी दाई है, सोहेवानी नीकी बानी जाकुंग्यानी प्राणी जानी ऐसी माता शाता दानी धर्मसीहे ध्याई है॥१॥ - (स्वरवर्णः) अ आ इ ई ऊ ऋ + ऋ ल लू . ए ऐ ओ , औ अं अः (व्यञ्जनवर्णः) . क ख ग घ ङ। च छ ज ज झ ञ ट ठ ठ - ड म ढ ण । त थ द ध न । प फ ब न
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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