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॥ नपधानवाहा (प) एक लाखमासमण समासमणे व
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रत्नसागर. जें (प) काजो शुध करी । ऊधरी। एकांतें बिखरतो परठवी । इरियाव ही पमिकमी । खमासमण पूर्वक कहै । इनकार नगवन पसान करी प डिलेहणा पडिलेहावोजी। पडे थापनाचार्य पमिलेही । थापे । गुरु समीप ( अथवा ) थापनाचार्य समीप । एक खमासमण देई । इलाका सं० ज० । मुहपत्ती पमिलेहुँ ( गुरु कहै पडिलेहेह पवै इहं कही ) खमासमण देई । मुहपत्ती पडिलेहै । प, दोय खमासमणे । इवा० सं० न. सिशाय संदिस्सा । सिशाय करुं (कही) नुक्तरीतें कणमात्र सिशाय करी। तिविहार नपवास कीधो हुवै । (तो) गुरुशाखें । पाणिहार पञ्चखे ॥ नपधानवाही प्रमुख । आहार कीधो हुवै (तो) वांदणां दोय देई। पच्च क्खांण करै॥ ॥ (प ) एक खमासमण देई । इलाका० सं० न० । नप धि मिला पमिलेहण संदिस्मा । बीजै खमासमणे । इलाका० सं० न. नपधि मिला पडिलेहुँ (गुरुवचनें ) इडं कही । दोय खमासमणे । इहा का० सं० न । बैसणो संदिस्सानं । बसणोठानं । कही (बैसै ) वस्त्र कंबला दि पमिलेहै। पुंजणी हुवै (तो) ते पिण । मुहपत्ती सुं पडिलेहै। उपवा सी तो। तेमाटें। सर्वपालो कमिपट्टो धोतीयो कणदोरो पमिलेहै ॥ * ॥ नपधानवाही प्रमुख नोजन कीधो हुवै (तो कमिपहादि पमिलेह्यां पड़े। वस्त्रकंबलादि पमिलेहै । (एविशेष बै)। पलै कालबेला सीम सिज्माय ध्या न करै । (पीछै) नच्चार प्रश्रवण २४ मिला पडिलेहै (जो) चनदस हुवै । (तो) पाखी चनमासी पमिकमणो करै। संवरिये संवचरी पनि कमणो करै ॥ ॥ तिहां देवसी पमिक्कमणो पूर्वे लिख्यो । तिमहीज करै। (पिण इतरो विशेष बै)। इला० । देवसियं आलोएमि । इत्यादि । देव सी आलोयां पढ़ । ठाणे कमणे । चंकमणे । (इत्यादि पाठ कहै ) (तथा ) खुद्दो वद्दव कान्सग्ग कियां । पत्रै । दोय खमासमणें । इलाका० सं० जा सिझाय संदिस्सा । सिज्ञाय करूं (कही) बैठो थको । तीन नवकार प्रमुख सिशाय करै इति ॥ * ॥ पालिकादि तीन पमिक्कमणाकी विधि आगे लिखी है ।। ॐ ॥ ॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ हिवै पनिकमणो हुवां पढ़ । साधुनी वेयाच कर । पोरसी