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________________ तिथोंका मोटा बोटा स्तवनपिण लिखिय नसके अझै एवमा ॥१२॥आपणे रंग जरिवात सुण जेतली। ऊपजे सामि न कहाय मुख तेतली। सुणो सीमंधरा राज राजेसरा । लामने कोमि प्रनुपूरि सवि माहरा ॥१३॥ पुव्व नवि मोह वसि नेह हुवै जेहनें। समरिये एणि संसार नित तेहनें। मेहनें मोर जिम कमल जमरोरमें । तेम अरिहंता चित्त मोरै गमें ॥१४॥ खरो अरिहंतनो ध्यान हियमें वस्युं । वापमो पापहिव रहिय करस्यै किसुं। गमि जिम गुरुडवर पंख आवे वही । ततखिण सर्पनी जाति नसकै रही ॥१५॥ पापमें कऊ सावज सहु परिहरी । सामि सीमंधरा तुझ पाय अणु सरी। सुच चारित्र कहियै प्रनू पालमुं। मुक्ख जंमार संसार जय टालसुं॥१६॥ तुह्म हुंदास हुं तुझ सेवकसही। एहमें बात अरिहंत आगलिकही। एवडी माहरी जगति जाणी करी। आप ज्यो वापजी सार केवल सही ॥१७॥ कलश ॥इम शधि वृधि समृधि कारण पुरित वारण सहुकरो। नवज्काय वर श्री क्तिलाने थुण्यो श्रीसीमंधरो। जयजयो जगत गुरु जीव जीवन करो सामि मया घणी । करजोडि वलि वलि वीनतुं प्रनु पूरि आस्या मनतणी ॥१८॥ ॥श्री॥ ॥8॥ ॥श्री॥ ॥१॥ इति श्री सीमंधरजीरी वीनती संपूर्ण ॥२॥ ॥ श्री ॥ ॥ श्री ॥ ॥ ॥अथ पंचमी वृद्धस्तवन ॥ ॥ ॥ प्रणमुं श्रीगुरुपाय । निरमल न्याननपाय । पांचमि तप जणुंए। जन्म सफल गिणुंए ॥१॥ चनवीसमो जिनचंद । केवल न्यान दिणंद। त्रिगमै गहगह्योए । नवियणनें कह्यो ए ॥२॥ न्यान वमो संसार । न्यान मुगति दातार । न्यान दीवो कह्योए । साचो सरदह्योए॥३॥न्यान लोचन सुविलास । लोकालोक प्रकास । न्यान विना पसुए। नर जाणे किसुंए ॥४॥ अधिक आराधक जाण । नगवती सूत्रप्रमाण । न्यानी सर्बतुए। किरिया देशतुए॥५॥ न्यानी सासोसास । करम करै जेनास । नारकिने सहीए। कोड बरस कहीए ॥६॥ न्यानतणो अधिकार । वोख्या सूत्र मझार । किरिया डै सही ए। पिण पाचै कही ए ॥७॥ किरिया सहित जो न्यान । हुवैतो अति परधान । सोनाने सुरो ए। संख दूधै नरयो ए ॥ ८॥ महा निशीथ मकार। पांचमि अदर सार । नगवंत नाषीयोए । गणधर साखियो ए॥९॥ (ढाल ?
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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