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________________ ( ढाल-माहरो बालुडोः- ) संभलि अमर विचार जीव सह कोई सग्पण भावें अवतर्याए, तो स्यो.मोह विकार एकण उपरे धन ते मुनि जे भव तय,ए । अम्हे हिव देस्युं दीख सुर साहुणि नमी पहुतो मन हरणे हिवेए, मयणरेह लहि सीख पाले संयम नमिच. रित्र कहिये हवे ए ॥५६॥ पदसरथ घरे बाल वाघे मुखे) भयो तमु प्रभावे नमिया वैरीए, सुत प्रभाव सुविसाल मात-- पिता जाणी हरणे तमि नामें करीए । कला बहत्तरे जाण> आठम रिसे हिं हूओ क्रमे जोवन लहेए, रूपचंति अति जाण सहस अट्टोत्तर नमरी परण्यो गहगहे ए ॥५७।। मधुकर कुसुमें जेम तिण परे भोगवे भोग तेहसं मन रलीए, सहू जीवने खेम संजम आदरे पदमरथ राजा वलीए । पाली चारित्र भावे मुनि मुगा गयो, नमि हूओ तेह राजियोए, पुन्यह तणे प्रभावे दीन२ चडतो महिमा पडहो वाजियो ए ॥५८॥ मंशिरथ तेणी रात सपै इस्यो सरी चोथे नरकें उपनोए; जाणी उत्तम जाति राजा चंद्रजस नाम प्रमाणे नीपनोए। कीधो उरधकाज सोग निवारीय मन आनंदे पूरियोए, चंद्रजसाले राज एम अनुक्रमे , द्रव्यत अरिगण चूरियोए (॥ ५९॥ नमि नृप तणो गयद एकणे अवसरे बंधन जोडी चालियो ए, आडे जइय नरिंद बहु बले उपक्रमें चंदजसे ते झालियो ए। सुणिय वात नमिराय दूत तिहां कणे पाठवि गज मंगावियोए, दूत तिहाथी जाइ जोडी
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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