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________________ आचार्यश्रीभ्रातृचन्द्रसूरिग्रन्थमाला पुस्तक-३३. श्रीमन्नागपुरीय वृहत्तपागच्छाधिराज श्रीपावचंद्रसूरीश्वरजीना शिष्य शास्त्रविशारद महर्षि श्रीब्रह्माजी कृतःश्रीचारप्रत्येकबुद्धचरित्र-रास. संशोधकः-श्रीभ्रातृचंद्रसूरि शिष्य मुनिसागरचंद्रः॥ जिणचोवीसह पयकमल, मनधरि हर्ष नमेसु । सुगुरु वचन सुभमंत्र जिम,हियडामाहि धरेसु ॥१॥ मुनिवर जे जग जाणिये, प्रत्यय देखी बुद्ध । मन आणंदें वंदि करि, कहिस्युं तासु प्रबंध ॥२॥ जे असंख इणि परे थया, तो पुण ए मुनि चार) चवण दीख केवल मुगति, साथ लहे सुविचार ॥३॥ ( गाथा ) ( करकंडु कलिंगेसु', पंचालेसू अ दुम्मुहो' । नमीराय विदेहेस, गंधारेस अ नग्गइ ॥१॥ वसभेज इंदकेऊ', वल अंबेअ पुष्फीए बोही। करकडु दुम्मुंहस्सअ, नमिस्स रंधाररनोअ ॥२॥५॥चोपइ॥ जंबूदीप भरत नरठाण, चंपानगरी महाप्रमाण । णुकणकंचण मणि ते भरी, परतख दीसे जिम सुरपुरी ॥६॥ तिहां दधिवाहण नामें नरिंद, सोहे सुर जिस्यो गोविंद । तसु घरे घरणी पद्मावती, सीलवंत जग मोटी सती
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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