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________________ ॥ पुण्य तणे लाटा, पुण्यो ओर पल्हाणीए तुरंग (चोपाइ:-) पुण्ये) पृथ्वी पिठ प्रसिद्ध, पुण्ये मनवंछितफल सिद्ध । पुण्ये हियडे निर्मल बुद्धि, पुण्य रिद्धि तणी बहु वृद्धि ॥४८॥ पुण्य लहिये बहु परिवार, लोक सवि सेवे अनिवार । पुण्ये हुइ काया नीरोग, पुण्य मनमानीता भोग ॥४९॥ (पुण्ये तणे बल नव नव रंग, (पुण्ये पल्हाणीए तुरंग । (पुण्ये घर लाभे राजण्या, पुण्य) ओछव चंदन छटा ॥५०॥ पुण्य सेवक लाभे वडा, पुण्य लाभे छीना-घड्य। (पुण्ये, पहेरण कोमल चीर, पुण्ये सहुस्युं वाधे हीर ॥५१॥ पुण्य) अंगि सुरंगां रूप, पुण्ये लहिये अकल सरूप । पुण्ये वसवा घर आवास, पुण्य पहुचे मननी आस ॥५२॥ पुण्ये भोजन सरस आहार, पुण्ये लहिये बहु सणगार । पुण्य लहिये जस बहु मान, पुण्य लहिये केवल ज्ञान ॥ ५३॥ नारी ते अंजनासुंदरी, पुत्र जणि आवी गुणभरी। एकज कलपलता में फली, तिम सोहे परिवारे मिलि ॥५४॥ संभारती पूर्वभव कर्म, करे अंजना जिणवरनो धर्म । शिलाचूरनो हनुमंत नाम, साजण मिलि दिधो अभिराम ॥५५॥ प्रल्हादरायनें चिंता टली, राजजोगि सुत आव्यो वली। चिंत्ते राजा वेरागीयो, धर्म, करवा हियडे जागीयो ॥५६॥ गुरु समीपे मुण्यो जिन धर्म, वांछे सदगति लहवा 'शर्म । पवनंजय मुत थाप्यो राज, पोते दीख्या लीध समाज ॥५७॥ प्रल्हाद मुनिवर संयम पाल, सद्गति पाम्यो सवि दुःख टाल । पवनंजयराय पाले राज, प्रजा पीहर सारे काज
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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