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________________ २३ देवना भोग विलास ॥१२॥ (दूहाः - ) ( पुण्य प्रबल छे जेहनें, तेहनें सहु संयोग । पुण्ये लहीये संपदा, पुणे सुरनर भोग ॥१३॥ (चोपाइ:- ) करम करइ ते सहीये सहू, करमें दुख पामिजे बहू । करमें मनवंछित संयोग,शुभकर्मे विलसीजे भोग ॥१४॥करमे पांडव ते रडवड्या, रतिसुंदरिने अति दुख पड्या । नल दवदंतीयें दुखसहयां, सीता रावणनें घरे रहयां ॥१५॥ करमें भाण भमे नहु संक, करमे दीसे चंद्र कलंक । भीख मंगाव्यो मुंजनरेश, नाच्यो नारी कहण महेश ॥१६॥ वनभमिया लखमण ने राम, मणिरथनें जाग्यो बहु काम । करमें) संतापियो हरिचंद, खय पाम्यो रावण तरचंद ॥१७॥ करमें कोरव, खय पामीया, चक्रवर्ति खटेखंड सामिया। वेद्या विण नवि छूटे कर्म, करमटले मन धरता धर्म ॥१८॥ श्रावके साधु इस्या बे भेद,धर्म करखों टालीने खेद। अंजनासुंदरी सुणि मर्म, आदरीयो शावकनो धर्म ॥१९॥ ते मुनिवर ज्ञानी अटकली, वलि अंजना पूछे मनरली । भाखो भगवन में कुण कर्म, कीधां दुख पाम्या नहु शर्म ॥२०॥ दूषण विण किम चड्यो कलंक, केहा कम तणो ए वंक । प्रियतणो मुझ हूओ वियोगे, मिलतो नहु दीसे संयोग ॥२१॥ मुनि कहे हिवे माहरु मुणो, परवभव कर्तव्य आपणो। जे जे जेहवां कर्तव्य करे, तेहने तेहवां फल विस्तरे ॥२२॥
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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