SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तदा, रण चडता निज तात । वारी कहे स्वामी तुम्हे, बेठा रहो अवदात ॥१८६॥ मुझ छतां तुम्हनें सही, चडवो न घटे स्वाम । बीडं दियो मुझनें इहां, रण चडस्युं तुम्ह ठाम ॥१५७।। इछ, करतां बीई दियु, जइने प्रणसे माय । अंजनासुंदरि प्रेमस्यु आगल उभी थाय ॥१५८॥ जाणे सीख मुझनें दीये, सामुं जोवे नहे। कहण कहावण कांइ कहे, तो हुँ थाउं सनाइ ॥१५९॥ स्त्रीसामु जोवे नही, लेइ मात आसीस । मानस सर जइ उतयों, प्रथम प्रयाण जगीस ॥१६०॥ पुरबाहिर डेरे रह्यो, कुंवर सरनी पाल । नारी विरतो पित्रस्युं, गोठ करे सुखसाल ॥१६१।। पाछल चिंते अंजना, पुण्य न कीधा भूरी। सो किम वंछित पामीये,फोकट जीव म जूरी ॥१६२।। आसन्ना दूरठिय, जे चित्तें उवरिठ । चिहुं अंगुलने आंतरें, नयणे कन्न 'न दिठ ॥१६३॥ मन मालीयां म जोइ, ऊंचे पण आंबिस नही। आप समाणा जोय, विहि विराडे जे लिख्यां ॥१६४॥ विहि रुठी ग्रह वंकडा, दुजण पूरे आस । आवि दुहेला खंधि चडि, जिम सो तिम पंचास ॥१६॥ चित्तविणठे रसगये, आदर करे अयाण । गुण तुट्टे सुर संधीये, ते किम लग्गे बाण ॥१६६॥ दुज्जण केरे बोलडे, सज्जण नेह मोड । कातणहारी सूत्र "जिउं, जिम त्रुटे तिम जोड ॥१६७॥ सजन तेहु सज्जन, जे से सोवार । अंब न हुवे लोंबडो, जे जातिय सहकार॥१६८॥ अंजनामुंदरी रोवती, आंसू झरे अपार । हूई आमण दुमणी, रहे दुखभर निरधार ॥१६९॥
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy