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________________ १३ कनके जडीए ॥ कहे कुंवर आवो तिहां, जोइ कन्या छे जिहां, तिण इहां विलंब न कीजीए अध घडीए । जोईये कन्या कहेवी, कांने सुणी छे जेहवी, तेहवी दीसे निजदृष्टिए चडीए ॥ ११६ ॥ जेम कोई जाणे नही, मित्र बिहे छाना सही, सामही विमानें बेसी करीए । चाल्या रातें अंधारी, वस्त्रधर्या नीलांभारी, संगारी कन्या गुण हियडे धरीए । सखी सहेली परिवरी, ते अंजना सुंदरी, गुणभरी दीठी अमरी जेहवीए । मित्र बिहे अतिहरखीयां, कन्याना गुण निरखीया, सरखीआ जेहवी निसुणी तेहवी ॥ ११७ ॥ दूहाः - प्रासाद राज शुंडा जिसी, वेणी दंड समान । अधम पुरुप पीडी, ही था नि ॥ ११८ ॥ ) ससवलां, वृक्ष नदी सम जाण । उत्तम नरस्युं प्रीतडी, वाधे इण अहिना ॥ ११९ ॥ अ 1 ढाल - उपरनीः अंजनास्युं तव अवदात, कहे साचीवात, समधात पहिलो तुज काजें लहीए । राजें विचार्यो जे वर, अहारम वरसें सुंदर, मुनिवर गइ जासे मृगतें सहीए | ते वरनो केहो काम, नवि ( लीजे तेहनो नाम, अभिराम पण एह अवगुण धारीओए ।। आउ अलप सुख संयोग, अधूरा नरना भोग, ए. योग जाणीरायें वायोए । १२० ॥ कन्या कहे निसुणो सखी, अमृत थोडुं ओलखी, सारखी लीजे जेहथी गुण घणोए । किहां रतन किहां
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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