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________________ आचार्यश्रीभ्रातृचन्द्रसूरिग्रन्थमाला पुस्तक-३२. महामहोपाध्यायश्रीरत्नचारित्रशिष्यश्रीमुनिराजश्रीविमलचारित्रगणीकृत श्रीअंजनामुंदरीचरित्र-रास. संशोधकः-मुनिसागरचंद्रः (श्रीशांतिनाथ प्रभुने नमस्काररूप मंगल करे छे. ) शांतिकरण जग जाणिये, विश्वमेन कुलचंद; भाद्रवपद ) वदि सातमें, चवीआ जगदानंदः-आनंद अचिरा हुओ अति ) घणो जेठवदि तेरस दिने, जनम पाम्या इंद्र ओच्छव कीध सुरगिरि शुभमने । गर्भथी जेणे गरी टाली . शांति थइ आणंदिया, स्वजन देखत ताति रंगें शांति जिने नामज दिया ॥१॥ मंडलपति पदवी लही, पहिलं भोगवि भोग; चक्रवर्तिपद पामिया, मिलीयो सहु संयोगः-संयोग मिलियो साधि षटखंड रतन सवि नवनिधि लह्या, मुगटबद्ध बत्रीस भूपति सहस सेवे गहगह्या । जेठमासिई कसिण चौदसे इंद्र चोसठ आविया, कीध ओच्छा दीख लीधी वर्णवे गुण भाविया ॥२॥ पोसमुकिल नवमी. दिने, पाम्यो केवल नाण; जेठबहुल तेरस तिथे, प्रभु पाम्यौं निर्वाणः-निर्वाण पाम्यो शांति जिणवर सिद्रिपद सुख संपदा, पामिया तमु चरण प्रणमो भगतिस्युं
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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