SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८ रूडी करणीय रूडों फल पामी जें, पाडूये पाडूये तिणें वामी जें ॥ अरे० ॥ ३८४ ॥ पुन्यनें पाप फरसे करम रूपें, परभव आवें उदए निज सरूपें । अरे० पुण्यनें पाप तरु सफल अछे, बीज वाव्यो फल लुणीजे पछे ॥ अरे० ॥ ३८५ ॥ निग्रंथ प्रवचन सत्य सुद्ध, अनुत्तर केवल एक संसुद्ध । अरे० प्रतिपुण्ण णयानुसल्लकत्तण, सिद्धि मुत्ति णिव्वाण निझाण गमण ।। अरे० ॥ ३८६ ॥ अवितथ विघटे नही असंदेहरे, सव्व दुःख प्रखीण मग्र गुणनो गेह । अरे० एणेरे मारग रह्या जीव सीझें, करम खपाविय केवल बूझें ॥ अरे० ॥ ३८७ ॥ आठय करमथकी तेय मूंकायें, सर्व दुःख अंतकरी मुगति जायें । अरे. केईय पूरव करम वसे, मुगति न जाएं देव लोक वसें ॥ अरे० ॥ ३८८ ॥ महा रिद्धि आदिक गुणेहि सहिया, कल्प ग्रैवेक अणुत्तर लहिया। अरे० तेहथकी चवी उत्तम कुल ते आवें, संयम पाली केवल मुगति पावें ।। अरे०॥३८९॥ वलीय चिहुं गति तणो बंध कहें, नारक तिरि मणु देव संग्रहें। अरे० महाआरंभे महापरिग्रह रावं, पंचय इंद्रिय वधे मांस भखें ।। अरे० ॥ ३९० ॥ नारकी चिहुं कारण चिहुएं तिरिया, माया अलीक लंच वंचण भरिया । अरे० माणुस पयई भद्र विनीतारे, सदय अमच्छर गुण दीपता ।। अरे० ॥३९१॥ सराग संयम संयमासंयमरे, अकामनिझरा बालतप क्रमरे । अरे० एणिपरि निरय तिरि मणुय देवा, च्यारे कारण माहें एक आदि लेवा ।, अरे० ॥ ३९२ ॥ जेणी परि नरग
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy