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________________ २१६ चिलाती वामणी वडभी बव्वरी। पओसी जोणी पन्हवि ईसणी, लासिय लोसी दमिली वारुणी ।।-सिंहली आरबी पक्कणी, बहली पुलंदी पारसी। सबरी मरुंडी कूबडी बहु, देसनी छे एरिसी। सदेश भूषण सदेस पहिरण, इंगिय चिंतय जाणिया। अभिलाष जाणे, वरसधर कंचूइझ पुरुष वखाणिया ॥३७२।। एम परिवारें राणी परिवरी, अंतेउरथी सघली नीसरी । जिह छे निज निज रथ तिह आव ए, स्थचडि यात्रा सनमुख धाव ए॥-धाव ए जिणवर वंदवाने, हेति चंपामझि थई । नीकली आवे जिहां पूर्ण, भद्र व्यंतरनो चेई ॥ छत्रादि अतिसय देखि कृणिक, रायनी परे बंद ए। उत्तरासंगने ठाम नीचे, सिरें दुःख्व निकंद ए ॥ ३७३॥ देइय प्रदक्षण जिनवर वंदीया, राणी सघली मन आणंदिया। कूणिक राजा पाछळ सवि रहें, औभी सनमुख शिव मारग लहें ।।-लहें मारग धर्म सुणतां, महावीर देसणकरें । राय राणी तेय परिषद, साहु देवादिक ठरें । ओघवल अतिबलो महाबल, अपरिमित बल वीर ए। तेज महिमा कंति सहियो, जगतगुरु महावीर ए ॥ ३७४ ॥ (दूहा.) करजिणेसर एणि परें, वंदें कूणिकराय । श्रीसमरचंद्र इम चितवे, वंदं वीरजिन पाय ॥ ३७५ ॥ (राग-वसंत.-हारे प्रभुपासतुं मुखडं जोवा. जेवी देशीमां.) वाणी सारद घन मधुर गाजें, गंभीर सुणतां भव भावठ
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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