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________________ भवभयने नाश करवानो महान् बीजमंत्र छे. तपश्चर्या, कठिन ( कर्मोनी निर्जरा करावानुं सबळ साधन छे. तपश्चर्या, अजरामर पद आपनारो सच्चोट गुरुबोध छे. अने तपश्चर्या, देवदानवर आदिने स्वाधीन करवामां प्रशंसनीय आकर्षण प्रयोग छ। टुंकामां कहिये तो प्राणिमात्र पोतानी धारेली धारणामा फतेहनो विजय वावटो फरकाववामां फक्त तप एज उत्तमोत्तम तात्कालिक सिद्धिदाता तंत्र छे ! रोहिणीसुंदरी रोहिणीतपना प्रभावथी आवी पडेलां असह्य दुःखोनो अंत आणी महान् सुख संपदानी भोक्ता थइ, एटलंज नहीं पण जेने संसारना संतापोनुज भान थएवं न हतुं जेथी तेना पतिये तेणिने कह्यां करतां करी बताववानोज अख्तरो अखत्यार को हतो. तथापि तपनी सानिध्यताथी कशी पण अडचण न नडतां आनंद मंगल वायो हतो. रोहिणी तपना महात्म्यांतर्गत साधु मुनिराजनी हेलना करवाथी, दुगंछा धरवाथी, दुष्टको आचरवाथी, गर्व करवाथी अने जैनदीक्षा अंगीकार करवाथी कृत्यानुसार मळतां फलोनी फलश्रुति आदिनु सारिपेठे स्पष्टिकरण कविवरें करेलु छे ते खास ध्यानमां लेवा योग्य छे. तेमज कवितामां रसालंकार आदि सरस रीते वर्णवी भाविकश्रोताओनु लक्ष खींचवा ग्रंथकारे अच्छी खंत धरावेल छे, अने तप महात्म्यने एके अवाजे श्रोतागण कबूल करे तेवीज खुबी दर्शावी ग्रंथनी पूर्णाहुति करी छे. जेथी आ लघु ग्रंथ खास जोवा लायक
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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