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________________ १८ आ प्रमाणे छे ' ॥ ६० ॥ संवत १७०८ वर्षे कार्त्तिक सुदि १ शनौ निर्वाण पाम्या | श्रीपार्श्व चंद्रसूरिगच्छे श्रीविमलचंदसू रिशिष्यं ऋषिश्रीपंजाना पादुका कारापितं । मलिक रायमल्ल, तत्सूत मलिक इंद्रजी, तत्सूत मलिक सूरचंद, तत्सूत शभाचंद श्राविका धना कारापितं || ऋषि पूंजानो निर्वाण वरोडा मध्ये ॥ तपनी संख्या ११३२९ उपवास कीधा तप परिसह अभिग्रह कीधा । साहाजिचंदे कीधा । ' ते पादुका हाल पण प्रतिदिन पूजाय छे. भव्यात्माओ प्रेमथी तेनी उपासना करे छे. ८ - श्री साधुगुणरससमुच्चय - रास. पृष्ट १६८ थी २२३ पर्यन्तमां आवेल छे. तेना कर्ता - श्रीनागपूरी यह हत्तपागच्छ नायक युगप्रधान वीरुधारक श्रीपार्श्व चंद्रसूरीश्वरजी महाराजना मुख्य पट्टधर वैराग्यरंगतरंगितात्मा बालब्रह्मचारी श्रीसमरचंद्रसूरीश्वरजी छे. तेनी सर्वगाथा ४३४ छे. आ ग्रन्थमां पद्मबंध गुजराती भाषामां सरल भाववादी कविता रची छे, अनेक मुनियोना भेद बताव्या छे तेमज मुनियोना अनेक गुणोनो वर्णन करेल छे. बार उपांग सूत्रोमां प्रथम उपांगसूत्र श्रीबुवाई सूत्र छे तेमांथी संक्षेप रूपे तेनो उद्धार करेल छे. पूज्यसूरीश्वरे वीजा पण ग्रन्थो बनाव्या छे. उपदेशसार रत्नकोश, ब्रह्मचर्यद्विपंचासिका. सत्तरभेदी पूजा आराधना. पूजाचोविशी. विगेरे स्तवन, स्तुतियो नमस्कारो, सज्झायो, पदो घणा रचेला तेमना जोवामां आवे छे. एमनो संक्षिप्त जीवन इतीहास आ प्रमाणे छे एमनो जन्म अणहिलपुर
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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