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________________ १७८ इक मन तनु बल क्य बली, सरापदान समरथारे । प्रसाद करे ततकाल ते, छूटा मुनिवर घरथारे ॥ एरिस० ॥ ८९ ।। तप बल शंक, ते औषधी, तनु मल औषधी जाणोरे । लघु वडनीति ते औषधी, सोवन धातु वखाणोरे ।। एरिस० ॥ ॥९० ॥ हस्तादिक फरसण करे, रोग दोष सवि जायेंगे। आमोसहि सबओसही, नख रोमादिक थायेरे ।। एरिसः॥ ९१ ॥ अथ मन बलिया जाणीये, मनस्युं किमें न डोलेरे। करिय प्रतिज्ञा निरवहें, वचने कूड न बोलेरे ॥ एरिस० ॥ ९२ ॥ इम वय काय बली हिवं, भूख त्रषाई न लीपेरे। सम्यग जाणे ज्ञान ते, समकितथी नवि छीपेरे ।। एरिस० ॥ ९३॥ चारित्र बल हिव मन धरो, सुमति गुपति सवि पाळेरे । परीसह बलि नहु गंजीये, अतीचार सवि टालेरे ॥ एरिस० ॥९५ ॥ बहु गुणवंता ए मुणिवरू, लोजे अहनिशि नामरे । श्रीपासचंद्रमरिभावस्यु,समरचंद्र करे प्रणामरे॥एरिस० ॥१६॥ (ढाल-गीता छंदनी. चालती तथा त्रुटकनी देशीमां.) कोठबुद्धिरे धान कुठारें जीम रहें, सूत्रारथरे ज्ञाव जीव. हृदि निरवहें । धारणा गुणरे बीजेबुद्धि तरुनी परें, लघु बीजथीरे मोटो वड जिम विस्तरेंः-विस्तरे वड जिम बुद्धि जेहनी, बीज (प) वड जिम बुद्धियां । वक्तार मुख वनसपति हूंती, कुसुम फल अति सुद्धया । सूत्तत्थ निरमल बुद्धि वस्त्रे, धरे पद अणुसारया । एक पदथी सहस आदिक, करें तसु अनुसारया
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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