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________________ आचार्यश्रीभ्रातृचंद्रसूरिग्रन्थमाला पुस्तक-३९. श्रीमन्नागपुरीयवृहत्तपागच्छीयसकलागमरहस्यवेदिश्रीजैनाचार्यवर्य श्रीसमरचंद्रसूरीश्वरविरचितःश्रीउववाईप्रथमउपांगसूत्रमाथी उधृतःश्रीसाधुगुणरससमुच्चय-रास. संशोधकः-जैनाचार्यश्रीभ्रातृचंद्रसूरिशिष्यमुनिसागरचंद्रः (वस्तु छंद.) रिसह जिणवर (२) पाय पणमेवि, तित्थनाथ गुण गाइशुं ।अविचळ चित्त पढमे उवंगें। तासु शीष गुण वर्णव्या, उववाई आगम सुचेंगें । जहठियवाई जाति कुल । बल रूवाइ संपुन्न, संभळि गुण जसु मन रमे, नरनारी ते धन्न ॥१॥ (चोपाई-छंद.) तेणे काळे तेणे समें, चोथे आरे दुःसुमसुसमें । वर्ष केतला थाकत जिशे, ए अधिकार जाणजो तिशें ॥२॥ अंग देश मांहि चंपापुरी, रिद्धादिक बहु गुण विस्तरी । श्रेणिक सुत तिहां कोणिकराय, राजतणा लख्खणगुण ठाय ।। ३ ।। सम्यग दृष्टी अति गुणवंत, जसु मन रमे सदा भगवंत । वर्द्धमान जिन तीरथराज, विचरत भवियण सारे काज ॥४॥ कोणिक राय
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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