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________________ १३२ देश विदेश अन्य आपणा, गरथ राज सनमान ललन ॥ अ० ॥ ९१ ॥ ऊंच नीच न्हाना मोटा, कुळ अकुलीन सभाउ चलनां । निरधन पुरुषज बोलियो, जाणे वाग्यो घाउ ललनां ॥ अ० ॥ ९२ ॥ मनमांहे ऊणो रहे, निसनेही निस्तेज ललना | वन विण आश किशी फळे, संसारी बहुजेज ललनां ॥ अ० ॥ ९३ ॥ पाप तथा परतापथी, शोचे अहनिशि दीण ललनां । जाणे ब्राह्मण ब्राह्मणी, के वळी धनरा हीण ललनां ॥ अ० ॥ ९४ ॥ बेटा जाया ब्राह्मणी, सात सनूरो प्रेम ललनां । पुन्य विना दीसे जिशा, दव दाधो वन जेम ललनां ॥ अ० ॥ ९५ ॥ सेवे रीं आरडे, खावा पीवा काज ललनां । रांक राव वातां करे, मिळियां सहु शिरताज ललनां ॥ अ० ॥ ॥ ९६ ॥ योवन वय पहुता जिशे, वेल तिशा फळ जाण aati | दालिद्र भांत बीबे पडी, सरखा सरखी वाण ललनां ॥ अ० ॥ ९७ ॥ सात मिळी शोचां करे, लखमी खाटण जांह ललनां । भीख जिणारे भूखशी, धरता मनह उछाह ललनां ॥ अ० ॥ ९८ ॥ चाले साते एकठा, मारग मोटा मांड ललनां । प्रकट नाम पुर पाडली, लोक वसे धन जाड ललनां ॥ अ० ॥ ९९ ।। ततखिण आवी ते तिहां, धरता मन उल्हास ललनां । करमसिंह करमें करी, विलसे लील विलास ललनां ॥ अ० ।। ४०० ।। ( दूहा:- ) 5 नगर समीपे आविया, बाग अनोपम देखि | जाए मांद्रे
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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